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________________ चूंकि संसार ही टूट जाएगा, अतः पापों के प्रति भी दिलचस्पी नहीं रहेगी। संसार में कोई मस्ती न आएगी। एक बात और है कि आकर्षण में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिक सक्रिय है। कामातुर पुरुष अधिक होते हैं, स्त्रियों की बजाय। इसीलिए प्राचीन ग्रन्थों में कहीं भी देखो, पुरुष को अधिक सावचेत किया गया है। उसकी भूखी-प्यासी नजरों को समझ लेने के कारण ही 'स्वदार-सन्तोष व्रत' का प्रावधान किया गया। स्त्री की तो एक पुरुष, एक पति के प्रति ही निष्ठा होती है। कारण वह सतीत्व को जीवन की अमूल्य सम्पदा मानती है। पर पुरुष का एक पत्नीत्व तो सदा खतरे में रहा। ___ जैसे लोभी आदमी को सोने और चांदी के कैलाश जैसे असंख्य पर्वत मिल जाये, तो भी कुछ नहीं होता, वैसा ही पुरुष के लिए है। उसकी वासना इतनी प्यासी है कि वह खाला केरी बेटी ब्याहें, घर में करे सगाई। यही कारण है कि हजारों-हजारों स्त्रियों ने सतीत्व की लाज रखने के लिए जौहर दिखाया। पर क्या कभी कोई पुरुष दिखा सका? दिखाए भी किस मुंह से! उसी के भय से ही तो असंख्य माताओं ने खुदकशी की . इसलिए अगर जिन्दगी में कुछ करना चाहो तो वह सीढ़ी गिराना जो आपको नीचे से ऊपर चढ़ाती है और ऊपर से नीचे लाती है। जाने-आने का चक्कर ही छोड़ दो, अगर एकबार ऊपर पहुंच जाओ तो पहुंचने के साथ ही सीढ़ी को खिसका देना, ताकि नीचे उतरने का सवाल ही पैदा न हो। मैं व्यक्ति को संसार से मुक्त देखना चाहता हूं, पर उसे मारना नहीं चाहता। मेरा उस मुक्ति पर अनन्य विश्वास है, जो मरते वक्त नहीं, अपितु जीते-जी मिलती है। मेरा मानना है कि कमल की पंखुड़ियों की तरह कीचड़ से निर्लिप्त रहने का नाम ही जीवन-मुक्ति है। कमल की साधना जीवन को सही साधना है। रहो भले ही पानी में, पर ध्यान यही रखना कि पानी आपको न छ पाये। यदि ऐसा हुआ, तो यह संन्यास को गले लगाना होगा। आकर्षण और विकर्षण, राग और विराग दोनों से पार होने का नाम ही संन्यास है, वीतरागता है, जीवन-मुक्ति है। जीवन-मुक्ति का पाठ पढ़ने के लिए चलें हम तालाब के पास, जहां देखने को मिलेगी मुक्ति की प्रार्थना। संसार और समाधि 55 चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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