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पर जो लोग किसी को द्वन्द्व में उलझाते हैं, कहर ढाते हैं, वे लोग वैसा न करें। कृत् कार्य का परिणाम भोगना पड़ता है। तुम किसी को तड़फाओगे, तो तड़फना ही पड़ेगा तुम्हें भी। हर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिये अपने कन्धे का सहारा दो। अपने कन्धे की टक्कर देकर उसे गिराओ मत। ज्योतिर्मय पुरुषों का यही सन्देश है।
हीरे को यों मत टूटने-बिखरने दीजिये । वह अखंडित है। उसे अखंडित ही रहने दीजिये । वह नापैद नहीं हुआ है। हां, धूल-मिट्टी चढ़ गई है। अपनेपन के जल से उसे धोओ, पोंछो। हीरे की दीप्ति निखर उठेगी। अगर उसे माटी में धंसाने की चेष्टा करोगे तो हीरा मात्र माटी का ढगला बनकर रह जायेगा। पर पता नहीं, ऐसा राम-राज्य आने में अभी कितनी देर है ? क्या हम लोग जोखिम उठाएंगे बदइन्तजामी और अपसंस्कृति के बीच फंसे असहाय आदमी और स्त्री की इच्छा और सुन्दरता को सुरक्षित करने की। यदि हमने ऐसा किया, तो हमारा कदम समझदारी और सफलता का सधा हुआ कदम होगा । सहअस्तित्व के मधुरिम गीत गूंज उठेंगे इस बिलखाती - बलखाती दुनिया में।
संसार और समाधि
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- चन्द्रप्रभ
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