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________________ लेता कि बड़ा शत-प्रतिशत बड़ा ही होता है हर दृष्टि से। मैं तो सोचता हूं कि छोटे में भी बड़प्पन मिल सकता है और बड़े में भी छोटापन। बीज में वृक्ष झांको और वृक्ष में बीज। छोटापन बीज है। बड़ और बड़प्पन उसका विस्तार है। __सत्य तो यह है कि बच्चे और बूढ़े में कोई मुद्दे का फर्क ही नहीं है। जो काम बड़े . करते हैं, वही छोटे करते हैं। जो फर्क है, वह समझने में है। आज आप जो बुढ़ापे में कर रहे हैं, उसके बीज छोटेपन में ही बोये गये हैं। आपने तो लड़के के पच्चीस साल का होने के बाद उसका ब्याह रचा, मगर उस लड़के ने ब्याह का मजा छोटेपन में ही ले लिया, गुड्डे-गुड्डी का ब्याह करके। सचमुच, संसार में कोई अल्पवयस्क नहीं है। सब समवयस्क हैं। हमारा सहअस्तित्व है। इसलिए छोटों पर अविश्वास की भावना मत लाओ। बड़ों का छोटों के प्रति अविश्वास है, उपेक्षा है, इसीलिए तो युवा पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी वालों में दूरियां बढ़ती हैं। तकरारें जनमती हैं। मेरी सोच के अनुसार तो छोटों के सामने ऐसी कोई बात ही मत कहो, जिससे उन्हें बुरा लगे,उनका उत्साह टे। छोटों के साथ भी, बच्चों के साथ भी अत्यन्त सभ्य, नम्र और सम्मान भरा व्यवहार होना चाहिये। विनयशीलता छोटों का धर्म है और आत्मीयता बड़ों का। उपेक्षा अधर्म है, अव्यवहारिक है। ठीक है, छोटों की आप उपेक्षा कर लो, उसे डांट लो, फटकार दो, पार लो, वह छोटा है, इसलिए कुछ बोलेगा नहीं, पर सोचेगा जरूर। भीतर ही भीतर क्रान्ति के स्वर उभरेंगे। ___ आप द्वारा लगाया जा रहा प्रतिबंध उसके जीवन को चमन न कर पायेगा। प्रतिबंध विकासक नहीं है। वह तो अवरोधक है। जीवन का सही विकास प्रतिबंध से नहीं, अपितु सहजता से होता है। प्रतिबंध कानून है और जहां-जहां कानून है, वहां वहां बचने-बचाने के रास्ते ढूंढे जाते हैं। सहजता जीवन-विकास का प्रथम सूत्र है। नदी को नदी रूप में रहने दो। उसे रोकने की चेष्टा मत करो। वह रुकेगी प्रतिबंधों के दायरों में। इससे वह न तो फैलेगी, न बढ़ेगी। वह सूक जायेगी। व्यक्ति का सहज स्वभाव उसे जिस मार्ग पर ले जाना चाहता है, उसे उसी मार्ग पर जाने दो। यदि ऐसा न हुआ, तो वह दमित होता चला जायेगा।दमन प्रगटन से ज्यादा बुरा है। आर्द्रक कुमार स्वयं को कितना भी प्रतिबंध में रखे, बचने-बचाने के रास्ते ढूंढे, पर आखिर विजय उसके तत्कालीन सहज स्वभाव की होती है। यदि वर्तमान स्वभाव संसार संसार और समाधि 39 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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