________________
इस दृश्य ने शुकदेव के पिता को झकझोर डाला। सोचने लगे, ये कैसी स्त्रियां हैं? मेरे युवा पुत्र/सन्त को देखकर उनमें कोई हलचल नहीं हुई, पर मुझ वृद्ध सन्त को देखकर हुई। उन्होंने महिलाओं से ही इसका कारण पूछा तो जवाब मिला, कारण साफ है। हमारे पास से आप दोनों ही गुजरे, किन्तु कारण जानने की इच्छा केवल आपके मन में हुई, शुकदेव के मन में नहीं। आपकी दृष्टि में स्त्री और पुरुष में भेद है, पर शुकदेव की दृष्टि में नहीं। जब तक व्यक्ति स्त्री और पुरुष में भेद की दीवार खड़ी करता रहेगा, तब तक उसका ब्रह्मचर्य आरोपित होगा, स्वाभाविक नहीं। __शुकदेव के पिता की होश की मुंदी आंखें खुल पड़ी। जान गये कि यथार्थता कहां है। उम्र से आदमी बड़ा नहीं होता। उम्र तो आदमी को बौना बनाती है।
- कहते हैं, लाओत्से बूढ़ा ही जनमा। बूढ़ा ही जन्मा यानी ज्ञान-वृद्ध होकर जन्मा। एक शिष्य है श्री प्रताप कोठारी। एक बार उसके दादा ने यों ही कह दिया कि यह तो अभी बच्चा है। यह क्या जाने! मुझे उसी समय याद आ गयी लाओत्से की। मैंने उसके दादा से कह भी दिया कि इसने दस-बारह वर्ष की उम्र में जो पाया है, वह आप साठ वर्ष की उम्र तक न पा सके। जीवन की चदरिया कब भीग जाये, कब रंग जाये, कब केसरिया हो जाये, इसका कोई भरोसा नहीं है। जीवनकी वास्तविकता उम्र में नहीं, उसकी जिन्दादिली और जीवन्तता में है। ___ छोटा, छोटा जरूर है। उसे रबर की भांति खींचतान कर लम्बा-चौड़ा नहीं किया जा सकता। पर यह मत भूलो कि जो रबर छोटा-सा दिखाई देता है, उसमें लम्बा-चौड़ा होने का सामर्थ्य सराबोर है।
जरा याद कीजिये, शंकराचार्य को, जिनका तैतीस वर्ष की उम्र में तो देहावसान ही हो गया। शायद आप सत्तर-अस्सी वर्ष की उम्र पाकर भी वह न पा पाये, जो शंकर ने तैतीस वर्ष की उम्र में पा लिया। उम्र का सम्बन्ध संसार से है, शरीर से है। गहराई में जाकर सोचता हूं, तो लगता है कि उम्र है असीम। संसार पाया है अनन्त। क्या कहीं कोई अन्त है उम्र के आकाश का? जो अन्त दिखाई देता है, वह शरीर का है, क्षितिज का है। पर वह सत्य नहीं, दृष्टिभ्रम है।
अरे उम्र! क्या उम्र से ही कोई छोटा-बड़ा हो गया। बहुत बार तो बड़ों को छोटों से भी बदतर हुआ पाता हूं। हां, यदि कभी बड़े-बूढ़े पथभ्रष्ट न होते, थिर रहते, तो मान
संसार और समाधि
38
-चन्द्रप्रभ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org