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________________ राजा और रानी को मिलना है तो मिले, बिछड़ना है तो बिछुड़े, पर आनंदघन उसमें क्यों जुड़े? राजा रानी के आकर्षण और विकर्षण में आनंदघन का कैसा सम्मोहन। यह सम्मोहन ज्यों-ज्यों घटता चला जाएगा। त्यों-त्यों आपका असली रूप निखरता चला जाएगा। मेरे का लगाव जितना कम होगा 'मैं उतना ही उभरेगा। आप पहचानते चले जाएंगे- 'कोहम्! हूं कोण छु, मैं कौन हूं। अभी पता नहीं है कि मैं कौन हूं। अभी तो यही पता है कि मैं इंजीनियर हूं। इंजीनियरी तो आपका धंधा है। आप इंजीनियर हो नहीं सकते। ___ कोई पूछता है आप कौन हैं। आप कहते हैं मैं फलां का बेटा हूं। अरे ! हद हो गई! वह यह कहां पूछता है कि आप किसके बेटे हैं! आप कहते हैं, बौद्ध हूं, हिन्दू हूं, मुस्लिम हूं, ईसाई हूं। मैं ब्राह्मण हूं, क्षत्रिय हूं, बनिया हूं। ___ कहा, आपने अपने बारे में बहुत कुछ कहा, पर सही एक भी नहीं। ब्राह्मण तो आप का कुल है, हिन्दू तो आपका धर्म है। आप कौन हैं? कुछ अपनी कहो भाई! आप कहेंगे मैं, मैं तो...! अब आपको समझ आएगी कि मैं, कोई और चीज है। इन सबसे परे है। “मैं हूं वहां, जहां दूसरे से राग के नाते नहीं है, सम्मोहन का लगाव नहीं है। 'मेरे' के छूटते-छूटते 'मैं बचता है। ज्यों ही हटेंगे 'मेरे' के सारे बादल, वहीं प्रगट होगा मैं का सूरज, जीवन के आकाश में। संसार और समाधि 35 -चन्द्रमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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