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________________ जहर घुले परिवेश में संसार को गहराई से निहार रहा हूं। होश की कसौटी मेरे हाथों में है। उसी कसौटी पर कस रहा हूं इस कसमसाते संसार को। कई दृश्य सामने आते हैं, रहते भी हैं और चले भी जाते हैं। परिवर्तन की इस कलचक्की में मैं भी हूं। मेरा वर्तमान अतीत को सीढ़ियों पर पांव बढ़ा रहा है। भविष्य की प्रतीक्षा है। भविष्य वह है जो कल्पनातीत है। भविष्य वह सब कुछ ला सकता है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी। समय चल रहा है, पवनचक्की की तरह। ___ बहुत बार मैं अपने बारे में और अपने साथियों के बारे में सोचा करता हूं। ज्यादा उम्र तो नहीं है मेरी, पर अतीत की उम्र का कोई हिसाब भी नहीं है। मेरी जन्म-कुण्डली तो मेरी उम्र पच्चीस वर्ष ही बताती है, पर मैं मानता हूं संख्यातीत। आप जो उम्र का हिसाब लगाते हैं, वह शरीर की उम्र है। मैं उम्र देखता हूं उसकी, जिसके कारण शरीर बना है, खड़ा है। मेरी नजर आत्मा की पगडंडी पर टिकी है। आत्मा की उम्र तो अनन्त है। सोचता हूं उसके जन्म के बारे में, उसके बचपन और यौवन के बारे में। क्या अब वह बूढी हो चुकी है? जब तक बचपन और यौवन का ही अता-पता नहीं है, तब तक बुढ़ापे की छानबीन कैसे हो पाएगी! बुढ़ापा और बचपन तो बाद में, अभी तक तो उसका जन्म भी अंधियारे की गुफा में खोया पड़ा है। मैं टोह रहा हूं आत्मा को, उसकी उम्र जानने के लिए। आत्मा की उम्र वास्तव में मेरी अपनी ही उम्र है। कितने जनम हो चुके हैं इसके! कितनी है इसकी उम्र! अनन्त जन्मों की कहानियां उस पर लिखी-खुदी हैं। इसलिए संसार में न तो कोई अबोध है, न कोई छोटा है. न कोई बड़ा है। आज जिसे आप छोटा और बच्चा कहते हैं और उसकी उपेक्षा करते हैं, वह बहुत बार बूढ़ा हो चुका है। उम्र के लिहाज से छोटा हर क्षेत्र में छोटा ही माना जाता है और बड़ा हमेशा बड़ा ही माना जाता है। छोटा अच्छी सूझ भी देगा, तो भी उसे डांट मिलेगी। पता नहीं, छोटा होना संसार और समाधि 36 -चन्द्रप्रम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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