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________________ मैं : सम्मोहन के दायरे में .. ससार एक सम्मोहन है। इसीलिए वह मोहता है, लुभाता है। इसका यह मोहना और लुभाना ही इसकी मनोरमता है। यह मनोरमता ही उसकी माया है। सागर की रह लहराता हुआ अपनी मोहमयी मूरत से वह कब लुभा लेता है, इसका कोई पता नहीं चल पाता। ___ मैं समुद्र तट पर जाता तो कई बार वहां खड़ा-खड़ा सोचता ये ठंडी हवाएं, ये चंचल लहरें, यह स्वर्णिम प्रभात, यह नीला नीर कितना सुरम्य है! क्या संसार ऐसा ही नहीं है? बिलकुल ऐसा ही तो है यह संसार। पर ज्यों ही आकाश में छाये हुए काले बादलों को देखता, आंधी की गर्जना सुनता, लहरों की दानवता निहारता तो आंखे मुंद जाती, भय से दिल कांप जाता, मौन और व्यथा प्राणों को झकझोर डालते। सोचता, जैसा यह समन्दर है क्या ऐसा ही है संसार! लगता, हां ऐसा ही तो है यह संसार! जैसे लहरों में उतार-चढ़ाव आते हैं, हवाओं में तीव्रता-मन्दता आती है, आकाश में रोशनी और अंधियारा छाता है। यह संसार भी तो ऐसे ही काले-पीले रंगों से रंगा है, इसके भी स्वाद खट्टे-मीठे है, तीखे-कड़वे हैं। ___ संसार का सम्मोहन इतना गहरा है, कि मीठा तो सभी को अच्छा लगता है किन्तु तीखा भी चल जाता है। नमक खारा जरुर है, पर लोग उसका भी उपयोग कर लेते हैं। अब तो तीखापन, नमक का खारापन इन नाड़ियों में खून की तरह इतना रम गया है कि उसके बिना मीठे केले का साग भी फीका लगता है। इस अभ्यास का नाम ही संसार का सम्मोहन है। सम्मोहन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे होता है। सम्मोहन कोई गेहूँ पीसना नहीं है, अीतु आटे को पीसना है। पीसे हुए को ही पीसना है। यह कोई दूध में पानी मिलाना नहीं है, अपितु पानी में ही दूध का आरोपण करके पानी में पानी मिलाना है। यह दही का मंथन नहीं है। यह जलपंथन है। यह बिदाम को फोड़ना नहीं है, अपितु प्याज के छिलके उतारना है। किसी साधु को अपनी लंगोटी बड़ी प्यारी थी। किसी ने उसकी लंगोटी चुरा ली। साधु ने उसे बहुत ढूंढा, पर मिली नहीं। उसके दिल को बड़ी ठेस पहुंची। क्योंकि वह उसे देह से भी ज्यादा प्यारी थी। उसने चोर को ढूंढने की ठानी। जैसे आज यदि कोई डाका संसार और समाधि -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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