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स्वयं ही बनेगा अपना तीर्थंकर। असली तीर्थ यात्रा तो भीतर ही है। जितने भीतर उतरते जाएंगे उतने ही तीर्थों की यात्रा होती चली जाएगी। जिसे आप मन-मन्दिर कहते हैं, परमात्मा का घर कहते हैं वहां आप अपना दिया जलाएंगे। सच्चाई तो यह है कि भीतर की यात्रा ही तीर्थ यात्रा है। वहीं है पालीताना, वहीं शिखरजी, वहीं काबा, वहीं कैलाश, वहीं काशी।
संसार और समाधि
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--चन्द्रप्रभ
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