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________________ पड़ता है तो पुलिस वाले सीधा चौराहा सम्भालते हैं। उनके अनुसार हर किसी को आखिर .. चौराहे से ही गुजरना पड़ता है। उस साधु को भी किसी वकील ने यह सलाह दी। उसने भी ऐसी जगह ढूंढ निकाली जहां पर चौराहे का रास्ता पहुंचता है। किन्तु वहां से आगे रास्ता नहीं मिलता। वह था मरघट। - साधु मरघट में ही रहा। हर किसी मुर्दे को सम्भालता, अपनी लंगोटी को टटोलता पर उसे उसकी लंगोटी मरते दम तक न मिली। सम्मोहन इतना जबरदस्त कि वह साधु लंगोटी के लिए अपनी सारी जिन्दगी को कुर्बान कर देता है। जिस मरघट में अपनी लंगोटी खोजता है, वहीं अपनी चिता भी सजाता है। लंगोटी-लंगोटी करता हुआ मर जाता है, पर लंगोटी नहीं मिल पाती। भला मिले भी तो कहां से! लंगोटी तो उसने चुरायी थी जो कभी मरघट तक जाता ही नहीं। साधु की लंगोटी को तो चूहा-कुतर-कुतर कर खा चुका था। क्या आपने भी अपने जीव में कभी किसी को सम्मोहित दशा में देखा है? देखा होगा, जरुर देखा होगा। स्वयं को ही देख लो। कितना सम्मोहित बना रखा है। स्वयं को! खांसते हो, मगर फिर भी बिड़ी-सिगरेट पीते हो। क्या यह सम्मोहन नहीं है? आप सम्मोहित भी इतने बने हैं कि बोध की तो आंखे ही चुंधिया गयी है? पत्नी का सम्मोहन, पुत्र का सम्मोहन, परिवार का सम्मोहन, दुकान का सम्मोहन, बैंक बैलेंस का सम्मोहन, कपड़े, भोजन और सैर-सपाटे का सम्मोहन। कितने-कितने सम्मोहन जुड़े हैं हम से। - सम्मोहन की पराकाष्ठा तो देखो! जिस माता ने, जिस पिता ने हमें पैदा किया, पालापोषा, समाज में जोने जैसा बनाया, विवाह करवाया, उसे ही हम छोड़ देते हैं। पत्नी का रंग इतना चढ़ा कि उसके सामने माता-पिता का रंग फीका-फस्स हो गया। बेटा अपना घर अलग से बसा लेता है। क्या माता-पिता ने इसीलिए जन्मा, पढ़ाया, बड़ा किया, कि शादी होने के बाद माता-पिता से अलग हो जाना? पत्नी के सम्मोहन में आप अपने पुत्रकर्त्तव्य की क्यों हत्या कर बैठते हैं? एक पिता पांच बेटे पाल सकता है, पर पांचों बेटे एक माता-पिता की सेवा नहीं कर पाते। एक के सम्मोहन में दूसरे से नफरत क्यों? सम्मोहन के साये में क्यों भूल जाते हैं आप अपने नैतिक कर्तव्यों को, दायित्वों को। ___ हम अनुयायी तो हैं निर्मोही वीतराग के, मगर अनुरागी बने हैं सम्मोहन के। वीतरागता जीवन की अनुगूंज न बन पायी। बने भी कैसे! जहां जीवन में राग की प्रार्थना हो, सम्मोहन की साधना हो। लाल रंग की साड़ी भी साड़ी है, पीले और नीले रंग की साड़ी भी साड़ी है, चितकबरे और भूरे रंग की साड़ी भी साड़ी है। साड़ी मात्र पांच मीटर का लम्बा संसार और समाधि 27 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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