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और मैं कहूंगा संसार में जियो तो ऐसे कीचड़ से ही कीड़ा पैदा होता है और कीचड़ से ही कमल । कीचड़ में पैदा हुआ कोड़ा कीचड़ में ही पैठता चला जाता है और कमल उसी कीचड़ में निर्लिप्त होकर सौरभ बिखेरता चला जाता है। परमात्मा का प्रकाश उसके बदन के अंग-अंग को रोमांचित कर देता है। उस कमल की प्रफुल्लता, निर्लिप्तता और सुषुमा में ही परमात्म- प्रकाश की सार्थकता है। सीखें हम कमल से कि जीवन किसे कहते हैं, साधना कैसे की जाती है और साध्य कैसे फल जाता है।
संसार और समाधि
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- चन्द्रमण
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