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मशभाशंसा
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म प्रिय चन्द्रप्रभ सागर तुमने, ऊर्ध्व चन्द्र तक स्पर्श लिया है। छ कर अन्तस्तल सागर का,
सार्थक अपना नाम किया है।
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कविता क्या है, मानवता के
जीवन का रस-बोध प्रवाहित । ___ सन्तों की संध्या-भाषा में, द्वयर्थक मामिकता उद्भाषित ।।
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युग-युग जिओ, सघन तमस मेंअभिनव स्वर्णिम दीप जलाओ। तप्त धरा पर सद्भावों के, सुधा-मेघ चहुँ दिस बरसाओ॥
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-उपाध्याय अमरमुनि
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