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आमुख
निर्मल आत्मा समय है। सर्व विकल्पों से अतीत आत्मा का शुद्ध स्वभाव समयसार है। कथ्य-अकथ्य विचारों का कथन, लभ्य-अलभ्य अनुभवों का प्रगटन, दृष्ट-अदृष्ट दृश्यों का अंकन समय के हस्ताक्षर हैं। ___समय सर्वाधिक अर्थपूर्ण तत्त्व है। इससे ज्यादा सार्थक तत्त्व मेरे लिए अप्राप्य रहा । चैतसिक जीवन की उपयोगिता के लिए चेतना के पास समय ही एक उपाय है, एक साधन है। समय तो सार है। इससे हटना साधना और जीवन के प्रस्थान-बिन्दु से असमीपस्थ रहना है ।
समय की ही नींव पर दर्शन का भवन खड़ा होता हैं । समय का अस्तित्व उत्पत्ति, स्थिति और विनाश से युक्त है । उसके साथ यही तीन प्रकार की प्रक्रिया अन्वित है। अर्थात् कुछ सृष्ट हो रहा है, कुछ नष्ट हो रहा है और कुछ शाश्वत तथा सातत्य-संयुक्त है। समय का यहो त्रिविध रूप दर्शन है । दर्शन विचार-मंथन का परिणाम है। समय और विचार का संगम हर कार्य को सिद्ध कर सकता है । महान् से महान् शोक को भी यह निस्तेज बना देता है । उचित समय पर उचित विचार का समागम आवश्यक है । वस्तुतः यह समय की सार्थकता का उपाय है।
समय का प्रत्येक क्षण मूल्यवान् होता है, जैसे स्वर्ण का हरेक कण । समय सबसे महान् है, देव से भी ! देव को तो पूजा, प्रार्थना आदि के माध्यम से बुलाया जा सकता है, परन्तु बीता हुआ समय लाख प्रयत्न करने पर भी वापस नहीं बुलाया जा सकता। सत्यत: समय उत्ताल तरंगों की भाँति है। अतः
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