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उसे रोका नही जा सकता, किन्तु उसका उपयोग करना ही उसकी बचत करना है। इसलिए कौन बुद्धिमान ऐसा है जो उपस्थित समय का अपनी समृद्धि के लिए उपयोग नहीं करता।
समय ही जीवन है । जीवन समय से ही परिनिर्मित हुआ है। किन्तु जीवन अत्यल्प समय का है । जैसे-जैसे समय बीतता है, वैसेवैसे जीवन छोटा होता जाता है। सूर्य पूर्व मे उदित होने के साथ हो पश्चिम की ओर यात्रा प्रारम्भ कर देता है। सूर्यास्त से पहले, अंधकार की पकड़ से पूर्व हमें समय की अदृश्य निधि को और उसकी परतों में छिपे रहस्य को खोज निकालना है। हम सदा समय के प्रकाश को प्राप्त करने के लिए आतुर हैं, लेकिन भाग्य की विडम्बना ही कुछ ऐसी है कि उसकी उपलब्धि होने पर हम सोये मिलते हैं । जब जाग्रत होते हैं तो अंधकार के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।
समय हाथ से निकल जाने पर केवल पश्चाताप ही हाथ लगता है, परन्तु बाद में पछताने से क्या लाभ ? जब कृषि सूख तो वर्षा किस काम की ! समय को बचाना तथा समय की शुद्धता जानना ही ‘सामायिक' है। सामायिक की चरम परिणति ही समाधि है। इस अवस्था में समय ही एकमात्र अवशिष्ट रहता हैऐसा प्रकाश-स्तम्भ जो प्रतिपल प्रभा प्रदान करे।
मुनि चन्द्रप्रभ सागर
गणतन्त्र-दिवस,
१९८५
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