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निष्प्राण साहित्य
अमुखरित है जिस साहित्य में साहित्यकार का
प्रकाशक व्यक्तित्व
बोलता जीवन । वह साहित्य,
साहित्य नहीं; मात्र है निर्जीव शब्दाक्षरों का समूह ।
आकर्षण प्राण का है शव का कभी नहीं !
ઉ૩
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