________________
ऐसे होता है परिवर्तन
नीति का लोहा चित्त की भट्टी में चिन्तन की अग्नि में परितप्त कर संयोजनात्मक कदम बढ़ाकर पीटो, बुरी तरह पीटो परिमार्जन के हथोड़ों से स्वयं लोहार बन अन्धविश्वास, पुरानी परम्पराओं के रजकण, नव निर्माण के साँचे में ढाल दो उसे । उपस्थित होगा एक नया रूप, परिष्कृत संस्कृति का स्वरूप।
६४
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org