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ज्योतिर्मुख
साहित्यकार धु तिकार देते हैं संसृति को प्रकाश खण्डहरों में छिपे वैभव को तेल में छिपी आभा को
जीवन पर्यन्त । बीत जाता है
ऐसे ही जीवन का बसन्त ।
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