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________________ हुआ?' स्वामी आनंद के चेहरे पर उदासी छा गई । उन्होंने कहा—'मैं क्षमा चाहता हूँ । कोई भी तैयार न हुआ।' स्वामी आनंद की बात सुनकर युवती चिंतित हो गई। स्वामी आनंद ने कहा—'तुम मुझसे अब क्या चाहती हो?' वह बोली-'मैं इतना ही चाहती हूँ कि कोई भले ही ज़िंदगीभर मेरे साथ न रहे, मगर कोर्ट में इतना भर कह दे कि में इसका पति हूँ। इससे समाज में मेरी अपकीर्ति होने से बच जाएगी।' स्वामी आनंद ने कुछ सोचा और कहा—'जा तू कोर्ट के भीतर, तेरी यह व्यवस्था हो जायेगी।' तब उस भरी मजलिस में स्वामी आनंद ने घोषणा की कि मैं इसका पति हूँ ।' यह बात सर्वत्र पहुँचा दी जाए। सारी सभा सन्न रह गई। युवती की आँखों से आँसू झरने लगे, उसकी लाज बच गई थी। क्या स्वामी आनंद इतने महान् थे ! इतना बड़ा लांछन अपने पर ले लिया ! युवती कोर्ट से बाहर आई, तो स्वामी आनंद उसके पाँवों में गिरकर प्रणाम करके कहने लगे—'माँ, अब तू हमेशा प्रसन्न रहना । मुझे खुशी है कि लोग भले ही अब मुझे निंदित करें, अपमानित करें, लेकिन मैंने एक अबला की आबरू को बचा लिया।' बस, स्वामी आनंद को इतने से ही संतुष्टि और तृप्ति है। बाकी तो संत की क्या निंदा, क्या यश-अपयश ! शक्ति जगाएँ आत्मविश्वास की ___आदमी न तो निंदा के भय से घबराए, न ही अपयश के भय से; न ही इहलोक के भय से और न ही परलोक के भय से । जो चलेगा, वही गिरेगा । जो चलने से ही कतराएगा, मात्र अड़ियल टट्टू बना रहेगा। तुम साहस बटोरो और कर्त्तव्य-पथ की ओर नि:शंक होकर बढ़ चलो। भय से आदमी मुक्त रहे, इसके लिए पहला सूत्र होगा—आदमी सदा आत्म-विश्वास से भरा हुआ रहे । आदमी यह ठान ले कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ प्राणी मैं स्वयं हूँ, मेरा मस्तिष्क, मेरा हृदय, मेरा शरीर अपने आप में परमात्मा की सबसे बड़ी सौगात है। आदमी को सदा आत्मविश्वास से भरा हुआ रहना चाहिए। भला, हम किस बात से भयभीत हैं ? होनी को टाला नहीं जा सकता और अनहोनी से तू क्यों घबराता है ? नेपोलियन बोनापार्ट जब पर्वतों को लाँघ रहा था तो एक बुढ़िया ने कहा था-'नेपोलियन, तुम वापस चले जाओ, क्योंकि इस पर्वत भय का भूत भगाएँ ६६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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