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________________ हैं । तेनसिंह और हिलेरी जैसे लोग, जिन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई की, मार्ग में सफेद भालू मिले, पर जिनके चित्त से भय भाग गया, अभय चग गया, भला, साँप, बिच्छु, भालू उनके भय का निमित्त कैसे बनेंगे ! ___ व्यक्ति जानवरों से भयभीत रहता है, पर मैंने नहीं सुना कि आज तक किसी शांत बैठे हुए इंसान को किसी भी साँप ने काटा हो । कोई भी साँप इंसान को तभी काटता है, जब इंसान का पाँव सर्प पर पड़ जाये और सर्प भयभीत हो जाये । मैंने कई-कई बार अपने पास से सर्प को गुजरते हुए देखा है। जैसे ही पाया कि कोई साँप गुजर रहा है; जहाँ थे, वहीं खड़े हो गए। सर्प आया और पास से गुजर गया, आगे बढ़ गया । ज्यों ही आप सर्प से भयभीत होंगे, सर्प चौंक उठेगा और डंक मारेगा; कुत्ते से भयभीत होंगे तो वह पीछे दौड़ेगा, काट खाएगा। भूत : भय का पिछलग्गू एक बार की बात है। कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद बहुत डरा करते थे, जल्दी भयभीत हो जाते थे। एक बार वे किसी जंगल से गुजर रहे थे । चलते-चलते वे काफ़ी थक चुके थे, इसलिए वे एक पेड़ के नीचे पहुँचे विश्राम करने के लिए, मगर जैसे ही वहाँ लेटने लगे कि तभी देखा कि उस पेड़ के ऊपर आठ-दस बंदर बैठे हैं। जैसे ही बैठे कि ऊपर से एक बंदर नीचे आता दिखाई दिया। वे घबराए और वहाँ से दौड़ पड़े। स्वामी विवेकानंद के दिल की धड़कन बढ़ गई। जैसे ही वे दौड़े कि सारे बंदर नीचे उतर आये और उनके पीछे हो लिये। विवेकानंद आगे-आगे, बंदर पीछे-पीछे । दौड़ते-दौड़ते वे थककर चूर हो गये। अब उनसे दौड़ पाना कठिन था। वे वहीं खड़े हो गये। उनके खड़े होते ही बंदर जहाँ थे, वहीं रुक गये । चौंके, सूत्र हाथ लगा—मेरे रुकने से बंदर भी रुक गये । अगर मैं एक कदम इनकी तरफ बढ़ाऊँ तो क्या ये भी एक कदम पीछे चले जाएँगे? उन्होंने साहस करके एक कदम बंदरों की तरफ बढ़ाया, बंदर पीछे हट गये । बस, जीवन में अभय दशा को लाने का सूत्र मिल गया कि तुम भय से भागो मत । भय अपने आप ही भाग जायेगा। तुम अभय हो जाओ। कहते हैं कि तब विवेकानंद बड़े आराम से चलकर उस वृक्ष के पास लौटे । बंदर धीरे-धीरे वृक्ष पर चढ़ गए। विवेकानंद आराम से उस वृक्ष के नीचे सोये, चैन की नींद ली। भय का भूत भगाएँ ५८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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