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नीचे उतारा जा सकता है । हमारे युग की यह बड़ी उपलब्धि है कि मनुष्य अपनी सोच, समझ और जीने की शैली में परिवर्तन लाकर जीवन को उत्सव का आयाम दे सकता है । मैं ऐसा होता हुआ देख रहा हूँ, इसीलिए अनुरोध करता हूँ। हम मात्र अपने मन के बोझों को, भारों को समझें और भीतर के निषेधों को विधायकता प्रदान करें। अपनी नकारात्मकताएँ हटाएँ और सकारात्मकताएँ/रचनात्मकताएँ ग्रहण करें। चिता बुझाएँ चिंता की
चित्त का पहला बोझ है—दिन-रात मन में पलने वाली चिन्ताएँ । चिता और चिंता दोनों समान हैं । केवल एक बिन्दु का फर्क है । चिता मात्र मुर्दे को जलाती है, किन्तु चिंता जीवित को भी भस्म कर देती है । इसीलिए चिंता चिता से दस गुनी ज्यादा खतरनाक है । कोई अगर पूछे कि शरीर का ज्वर क्या है? आप कहेंगे मलेरिया। वहीं कोई पूछे कि मन का ज्वर क्या है ? मैं कहूँगा चिंता। चिंता ही ज्वर है और चिंता ही जरा । चिंता ही अकाल मृत्यु का कारण है।
चिंता का मतलब है ऐसी सोच, ऐसी घुटन कि यह कैसे हुआ या कैसे होना चाहिए या कैसे होगा। मन में इस तरह की चलने वाली उधेड़बन ही चिंता है। खाली/निकमा बैठा आदमी चिंता ही करेगा । दुःखों से मुक्त रहना चाहते हो, तो स्वयं को सदा व्यस्त रखो।
___ कहते हैं कि चर्चिल को अठारह घंटे काम करना पड़ता था। किसी ने पूछा, इतनी जिम्मेदारियों से क्या आपको चिंता नहीं होती? चर्चिल ने जवाब दिया—मेरे पास इतना समय ही कहाँ है कि मैं चिंता करूँ?
व्यस्तता—चिंता से मुक्त होने का पहला मंत्र है । ठाला बैठा आदमी सौ तरह की चिंताएँ पालता है । कभी धन के बारे में, कभी पत्नी के बारे में, कभी बच्चों के बारे में, कभी दोस्त, दुश्मन के बारे में । आदमी चाहे-अनचाहे अपने साथ इन चिन्ताओं को ढोए रहता है । वह अगर अपने वर्तमान की चिंता करे तो शायद कुछ बात भी बने मगर वह या तो अतीत के बारे में सोचता है या भविष्य के विषय में । जो व्यक्ति भूतकाल के बारे में सोचता है वह भूत ही हो जाता है । जो बीत चुका, सो बीत चुका । बीता हुआ समय और बीती हुई बातें लौटकर नहीं आने वाली हैं। रूठा हुआ देवता एक बार आपके प्रसाद चढ़ाने से प्रसन्न हो सकता है, मगर बीता मन के बोझ उतारें
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