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यही जीवन को सुख से जीने का सीधा-सरल रास्ता है ।
शान्त, सजग और उत्साहपूर्ण जीवन का स्वामी होना ही जीवन को उत्सव बनाना है।
साधु-सन्त लोग शरीर को यातनाएँ देते हैं और गृहस्थ लोग हर पल अपनी मानसिक यंत्रणाएँ झेलते रहते हैं, कभी क्रोध में, कभी ईर्ष्या में, कभी द्वेष में, कभी वैमनस्य में । जैसे चक्की पीसती है वैसे ही आदमी दिन-रात अपने मन और चित्त के बोझ से दबा रहता है, पिसता रहता है । मैं कहता हूँ जीवन उत्सव है, जीवन वरदान है । जीवन की हर गतिविधि ईश्वर की ही आराधना है। हमारा हर कार्य प्रभात का पुष्प बन जाए, एक ऐसा पुष्प जिसे हम सिर पर रख सकें, हृदय को सुवासित करने के लिए प्रयोग कर सकें, परमात्मा को अहोभाव से समर्पित कर सकें । इसलिए तुम हर कार्य को बड़े प्रफुल्लित हृदय से करो । अगर लगता है कि कार्य उल्लसित भाव से नहीं हो रहा है, आपको परिणाम नहीं दे रहा है तो कार्य को बदलने की बजाय अपने चित्त की दशा को बदलने की कोशिश करो । अगर आप आईने के सामने जाते हैं और आईना आपको आपकी भद्दी शक्ल दिखाता है, तो आईने को बदलने से बात न बनेगी। तुम अपने चेहरे पर एक सुवास भरी मुस्कान ले आओ, आईना अपने आप गुलाब के फूल की तरह खिल उठेगा। __अगर किसी बगीचे में कोई लकड़हारा या सुथार जाता है तो वह यह टटोलेगा कि किस पेड़ की लकड़ी कैसी है । उसकी नजर सीधे उस पेड़ की लकड़ी पर जाकर टिकेगी। अगर कोई सौन्दर्य प्रेमी व्यक्ति वहाँ पहुँच जाए, तो वह देखेगा कि फूल किस तरह से खिले हुए हैं और उनसे कैसी महक आ रही है । प्रसन्न हृदय से संसार को देखोगे तो संसार स्वर्ग नजर आएगा और खिन्न हृदय से संसार को देखोगे तो संसार नश्वर और नरक ही दिखाई देगा। चित्त के बोझों को नीचे उतार फेंको, ताकि हमारा जीवन आकाश-भर आनंद का मालिक बन सके। मन को दें सार्थक दिशाएँ
क्या हैं आखिर चित्त के बोझ? कौन-से वे पहलू हैं जो हमारे चित्त में बोझ बनकर दिन-रात हमें पिस रहे हैं, घिस रहे हैं, दबा रहे हैं ? मनुष्य का मन हो शान्त, निर्भार, पुलकित और ऊर्जस्वित । अगर हम अपने मन को बोझिल और तनावग्रस्त देख रहे हैं, तो चिंतित न हों । मन बदला जा सकता है। बोझों को मन के कंधों से
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लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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