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________________ नहीं कर सकता, वह बनी हुई रचना को बिगाड़ने की कोशिश जरूर करेगा । अगर हिटलर को जीवन को सकारात्मक रूप देने का मार्ग मिल चुका होता तो हिटलर, हिटलर न होता । वह पच्चीस सौ साल बाद फिर महावीर या बुद्ध होता । अगर बुद्ध को अपने जीवन में दिव्य मार्ग न मिलता, तो वे बुद्ध नहीं, हिटलर या चंगेज खाँ ही होते । जो जीवन व्यक्ति के लिए महान् वरदान के रूप में है, वह उसे सृजन का मार्ग देता है या विध्वंस का, बनाने का कौशल देता है या मिटाने का, यह स्वयं व्यक्ति पर ही निर्भर है । 1 अगर कुदरत ने हमें वाणी दी है, तो इस वाणी के द्वारा हम गीत गाते हैं या किसी को गालियाँ देते हैं, यह हम पर निर्भर करेगा । किसी लाठी का उपयोग हम किसी बूढ़े आदमी के सहारे के रूप में करना चाहते हैं या किसी की पीठ पर वार करके उसको धराशायी करने में, यह हम पर निर्भर करता है । जो तीली घर के अँधेरे को भगा देती है, वही घर को जला भी सकती है। तीली का सदुपयोग या दुरुपयोग हम पर ही आधारित है । आदमी चाहे तो अपने जीवन को स्वर्ग के आयाम दे सकता है और चाहे तो नरक के मार्ग पर स्वयं को धकेल सकता है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस कुल में पैदा हुए और आपके पूर्वज कौन रहे ? महत्त्व इस बात का है कि आपने जीवन की कौन-सी समझ ग्रहण की ? मैं एक ऐसे परिवार की मिसाल आपके सामने रखना चाहूँगा जिसमें दो भाई थे । एक भाई अव्वल दर्जे का नशेबाज था, जो हरदम शराब में धुत्त रहता; अपनी पत्नी और बच्चों को मारता पीटता; जो कमाता, सारा नशे में उड़ा देता । उसी का दूसरा भाई अपने बच्चों पर जान छिड़कता; पत्नी को बड़ी नाजों से रखता; उसके घर में किसी प्रकार की कमी नहीं थी; समाज में खूब मान-सम्मान था । मैंने उन दोनों भाइयों से मिलकर इसका कारण जानना चाहा कि आखिर एक माँ की कोख से जन्म लेने वाली उन संतानों में इतना अन्तर कैसे ? 1 मैंने शराबी भाई से कारण पूछा, तो उसने कहा-'अगर मैं अपने बच्चों को मारता-पीटता हूँ, गाली-गलौच करता हूँ तो इसमें नई बात कौन-सी है ! मेरा बाप भी ऐसा ही था । वह भी मेरी माँ को ज़लील करता, हम बच्चों को खूब मारता पीटता, सारे पैसे शराब में फूँक डालता। मैं जो कुछ हूँ, मेरे बाप के कारण हूँ ।' मैं दूसरे भाई के पास गया और उससे भी पूछा - जनाब, तुम इतने सुशील १५ लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003897
Book TitleLakshya Banaye Purusharth Jagaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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