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मन के बोझ उतारें
वन मनुष्य के लिए एक बेशकीमती सौगात है । जीवन के सामने दुनिया 'भर की संपदाएँ तुच्छ और नगण्य हैं । व्यक्ति भले ही परम पिता परमेश्वर की आराधना कर उनसे कोई वरदान पाना चाहे, लेकिन यह वरदान तो उसे जीवन के रूप में पहले से ही हासिल है । जीवन ! अपने आप में ही वरदान है । जीवन से बढ़कर कोई उपहार या पुरस्कार भला क्या होगा !
जो व्यक्ति अपने आपको दीन-हीन मान बैठा है वह प्रकृति की एक महान् सौगात को नज़र अंदाज़ कर रहा है । दीन-हीन क्यों हो मनुष्य ! उसे तो इतना अमूल्य जीवन मिला हुआ है कि उसका दर्जा किसी भी अति साधन-संपन्न व्यक्ति से कम नहीं हो सकता । वह ज़रा अपने एक-एक अंग की कीमत आँके । उसकी
आँखें, उसका दिल, उसके गुर्दे क्या लाखों-करोड़ों देकर भी इन्हें पाया जा सकता है ? व्यक्ति अपना नजरिया बदले और जीवन की महत्ता, मूल्यवत्ता और गरिमा को समझे। सृजनात्मक हो जीवन का स्वरूप
व्यक्ति के सम्मुख जीवन जीने के दो तरीके हैं—पहला, व्यक्ति सृजन करे; दूसरा, उसकी ऊर्जा विध्वंस में चली जाए। ऊर्जा के दो ही उपयोग हो सकते हैं—बनाना या मिटाना । जो व्यक्ति अपनी ओर से समाज में नई रचनाएँ सृजित मन के बोझ उतारें
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