________________
बच्चा जंगल में अपनी ही जैसी नफरत भरी आवाज सुनकर भयभीत हो उठा। वह पुनः अपने घर की ओर दौड़ा और घर पहुँचते ही अपनी माँ की छाती से लिपटकर रो पड़ा। माँ ने उसे यूँ रोता देख पूछा-क्या हुआ बेटे, इतने घबराये हुए क्यों हो ? बच्चे ने जंगल की बात सुनाई । माँ समझ गई कि वहाँ क्या हुआ। उसने बेटे से कहा-माई सन, इस बार जंगल में जाकर जोर से कहो—मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ ! आई लव यू ! बेटे ने ऐसा ही किया। उसके द्वारा कहे गये प्यार भरे शब्द जंगल से प्रतिध्वनित होने लगे। उसे अपने बोले जाने पर हर बार यही सुनाया दिया–हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ, सो मच आई लव यू !
प्रेम के बदले में प्रेम के गीत लौटकर मिलते हैं और नफरत के बदले में नफरत के शोले । हमारा तो यह जीवन एक निरंतर जारी अनुगूंज भर है । कौन आदमी नहीं चाहता कि उसे प्रेम का संगीत सुनने को न मिले, आनंद का अमृत पीने को न मिले, पर क्या हम प्रेम और आनंद के बीज बोने के लिए तैयार हैं? लौटकर वही तो आएगा, जिसकी तुम आज व्यवस्था कर रहे हो। इस बात की फिक्र मत करो कि हवाएँ किस ओर की चल रही हैं । तुम अपनी दिशा और लक्ष्य का निर्धारण करो । जिस दिशा की ओर नाविक पाल बाँधेगा, नौका उस ओर ही गतिशील होगी।
कैसे बनें हम स्वस्थ सोच के स्वामी ? झाँकना होगा हमें अपने भीतर के गलियारे में और देखना होगा कि कैसी है हमारी आज की सोच । भीतर के बगीचे में फालतू की घास-फूस उग आई हो, तो चिंता करने जैसी कोई बात नहीं । हम घटिया स्तर के घास-फूस को काट फैंकें, बेहतर सोच के बीज बोएँ । आज नहीं तो कल मरुस्थल में मरूद्यान अवश्य लहलहा उठेगा। भटके हुए राहगीर को रास्ता जरूर मिल जाएगा। सकारात्मकता में कई समाधान
स्वस्थ सोच का स्वामी बनने के लिए पहला सूत्र है : व्यक्ति सकारात्मक सोच का स्वामी बने । यह एक अकेला ऐसा सूत्र है, जिससे न केवल व्यक्ति की, वरन् समग्र विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है । यह सर्वकल्याणकारी महामंत्र है । मेरी शांति, संतुष्टि, तृप्ति और प्रगति का अगर कोई प्रथम पहलू है, तो वह सकारात्मक सोच ही है । सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म हो और यही उसकी आराधना का मंत्र।
स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
८३
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org