SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की कटाई। हमारे जीवन में आज जो है, वह अतीत में सोचे गये विचारों का ही परिणाम है। हमारा भविष्य हमारे आज के सोचे गये विचारों का परिणाम होगा। अपने भविष्य को स्वर्णिम बनाने के लिए हमें उन बीजों पर ध्यान देना होगा, जिन्हें हम आज बो रहे हैं। प्रेम के बीज बोओगे, तो प्रेम के ही फल लौटकर आएँगे; क्रोध और गाली-गलौच के बीज बोकर अपने लिए विषैले व्यंग्य भरे वातावरण का ही निर्माण कर रहे हो । मनुष्य की जैसी सोच होती है, वैसे ही उसके विचार होते हैं; जैसे विचार होते हैं, वैसी ही अभिव्यक्ति होती है; जैसी अभिव्यक्ति होती है, वैसी ही गतिविधियाँ होती हैं, जैसी गतिविधियाँ होती हैं, वैसा ही चरित्र बनता है; जैसा चरित्र होता है, वैसी ही आदतें होती हैं । अपने चरित्र और आदतों को सुधारने के लिए तुम अपनी सोच और सोचने की शैली को सुधार लो, तो तुमने जड़ों को अमृत बनाकर फलों को अमृत बनाने का मार्ग अपने आप ही पार कर लिया। कोई भी दूसरा व्यक्ति हमारे साथ गलत व्यवहार नहीं करता । हमने पूर्व में जैसा व्यवहार किया था, दूसरे के द्वारा वही तो लौटकर आता है । दूसरे का हर कृत्य हमारे अपने द्वारा किये गये कृत्य की वापसी है । गालियों के बदले में काँटों की ही सौगात मिलेगी और तुम्हारी मंगल वाणी के बदले फूलों का गुलदस्ता ही समर्पित होगा। यह जगत तो व्यक्ति की अपनी ही प्रतिध्वनि है—प्यार देकर प्यार पाओ, नफरत देकर नफरत पाओ। क्या आप जीवन के इस विज्ञान को आत्मसात करेंगे कि यह जगत और कुछ नहीं, हमारे अपने ही जीवन की गूंज और अनुगूंज भर है ! जीवन, एक अनुगूंज भर जब एक बालक अपनी माँ से नाराज हो उठा, तो उसने माँ से साफ शब्दों में कह डाला, मम्मी, आई हेट यू-माँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ, नफरत करता हूँ, नफरत करता हूँ। बेटे के द्वारा ऐसा कहे जाने पर माँ ने उसे लपककर पकड़ना चाहा, मगर बच्चा माँ के हाथ न आया । वह गाँव के बाहर जंगल की तरफ भाग गया। उसके मन में माँ के प्रति अभी भी गुस्सा था । वह जंगल में जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा-हाँ-हाँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ । माँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ । उसके जोर से चिल्लाये जाने पर उसे लगा कि इस जंगल में और भी कोई बालक रहता है, जो उसी को संबोधित करते हुए कह रहा है-हाँ-हाँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ । हाँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ। ८२ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy