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जीवन में किसी खास वस्तु को देना प्रकृति की मेहरबानी है, पर उस खासियत का सही उपयोग करना मनुष्य की जवाबदारी । नींबू को आँख में डालकर आँसू ढुलकाना या नींबू-पानी की शिकंजी पीकर स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त करना यह सब मनुष्य पर ही निर्भर करता है । 'ग' से गणेश भी होता है और गधा भी; 'स' से सत्य भी होता है और सत्यानाश भी। किसी भी अक्षर या शब्द का कैसा उपयोग करना—यह आदमी की सोच और समझ पर ही निर्भर करेगा।
दिखने में सारे इंसान एक जैसे ही होते हैं—वही आँख-नाक-हाथ-मुँह, पर सबके सोचने-समझने के अलग-अलग तरीके होने के कारण हर मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है, शायद इसीलिए स्वतंत्र होता है । सागर में हवाएँ पूर्वी चलती हैं, पर नौकाएँ अलग-अलग दिशाओं में जाती हुई नजर आती हैं । वस्तुतः नौका उस ओर ही चलती है, जिस ओर की दिशा का निर्धारण करके नाविक उस पर पाल बाँधता है। हमारी भी यही स्थिति है। हमारा जीवन भी उस ओर ही गतिशील होता है, जिस दिशा की ओर हमारी सोच होती है। जैसा बोये, वैसा पाए ___जीवन में वही तो फलता है, जैसा अतीत में उसका बीजारोपण हुआ है। जैसा बोये-वैसा पाए; पर प्रकृति की यह विचित्र व्यवस्था है कि जितना बोये उससे सौ गुना पाए । आम का एक बीज बोओ, तो हजार फल पाओ; बबूल का एक बीज बोओ, तो हजार काँटे पाओ । मनुष्य की हर सोच उसके जीवन के खेत में बोया गया एक बीज ही है। यदि हम अच्छी सोच के बीज बोएँगे, तो जीवन में अच्छे फल पाएँगे। बुरी सोच का बीजारोपण तो हाथ में बबूल ही थमाएगा। ___कहावत है—खाली दिमाग शैतान का घर होता है । मैं तो कहूँगा मनुष्य का मस्तिष्क तो एक ऐसा बगीचा है, जिसमें गुलाब, चमेली और चम्पा के बीजों को बोकर व्यक्ति अपने मस्तिष्क की बगिया को सुरम्य और सुवासित कर सकता है । ध्यान रखें, अगर हमने अपने जीवन में अच्छे बीज न बोये, तो उसमें कंटीली झाड़ियाँ और घास-फूस उगने से कोई नहीं रोक सकता । फालतू का घास-फूस तो ऐसे ही उगता रहेगा। बगीचा फल-फूल से हरा-भरा हो जाए, तब भी कुछ-न-कुछ अवांछित घास-फूस उग ही जाती है । जीवन को सुन्दर और मधुरिम बनाने के लिए हमें जहाँ स्वयं में अच्छी सोच के बीज बोने होंगे, वहीं अपने आप उग आने वाली बुरी सोच की घास-फूस को काटते भी रहना होगा—एक ओर उगाई हो, दूसरी ओर कटाई; अच्छी फसलों की उगाई हो, घास-फूस स्वस्थ सोच के स्वामी बनें
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