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________________ रही। ओह, हम अपने जीवन के साथ सहजता से पेश क्यों नहीं आते ! हम सदा निश्चित रहें। इस बात को सदा याद रखें कि जो हमें जीवन देता है, वह जीवन के साथ उसकी व्यवस्थाएँ भी देता है । मनुष्य माँ की कोख से बाद में पैदा होता है, माँ की छाती दूध से पहले भर जाती है। हम प्रकृति की व्यवस्थाओं में विश्वास करके तो देखें, हमारी व्यवस्थाएँ स्वतः न होने लगे, तो यह भी आजमाकर देखना । प्रकृति की व्यवस्थाएँ बड़ी सटीक होती हैं । जीवन में सारे द्वार एक साथ बंद नहीं होते। यदि एक बंद होता भी है, तो विश्वास रखें, दूसरा खुल भी जाता है। हमारा यह विश्वास और अन्तर्दृष्टि ही हमें अपने जीवन में सहजता और शांति का आचमन करा पाएगी। न उलझें प्रतिक्रियाओं में ___मन की शांति का स्वामी होने के लिए सहजता से जुड़ा हुआ जो दूसरा पहलू है, वह है-प्रतिक्रियाओं से परहेज रखना । क्रियाओं का होना स्वाभाविक है, किंतु प्रतिक्रियाओं का होना आत्मनियंत्रण का अभाव है । जो अपने आप पर काबू नहीं रख सकते, वही बात-बेबात में व्यर्थ की प्रतिक्रियाएँ करते रहते हैं । जो अपने जीवन में इस बात का बोध बनाये रखता है कि मैं क्रिया-प्रतिक्रिया के भंवर-जाल में नहीं उलझंगा, वही अपने जीवन में शांति और आनंद को बरकरार रख पाएगा । प्रतिक्रिया ही तो आज हर परिवार और समाज की समस्या है। प्रतिक्रिया ने हमेशा परिवार और समाज को बाँटा है, हिंसा और तनाव को प्रोत्साहन दिया है, मानसिक और व्यावहारिक संतुलन को क्षति पहुँचाई है । जब भी प्रतिक्रियाएँ करेंगे, हम स्वयं को क्रोधित और अनियंत्रित पाएँगे; हमारा रक्तचाप बढ़ जाएगा । सावधान, कहीं ऐसा न हो कि हमें ब्रेन-हेमरेज हो जाए। क्या कभी आपने घर-परिवार पर ध्यान दिया कि घर में इतना तनाव और खिंचाव क्यों है ? भाई-भाई में असंतुलन क्यों है ? पिता और पत्र के बीच अलगाव के क्या कारण हैं? सीधा-सा जवाब है-बातों को न पचा पाना, छोटी-छोटी बात पर अनियंत्रित और प्रतिक्रियाशील हो उठना। तुम समाज की भी स्थिति देख लो, प्रतिक्रियाओं का पारा कितना चढ़ा हुआ है । कोई इधर खींचता है, कोई उधर; कोई इधर की हाँकता है, कोई उधर की । स्वस्थ शांति का सुकून कहाँ है ! सब अपनी-अपनी संकीर्णता और दायरे में उलझे हैं। उदार और विराट दृष्टि है किसमें ! आदमी की शांति को खंडित करने के लिए एक छोटा-सा निमित्त भी काफी हो जाता है। किसी सरोवर को हिलाने के लिए लम्बे-चौड़े तूफान की जरूरत नहीं होती, मिट्टी की एक ठीकरी ही पर्याप्त होती है। ७२ ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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