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________________ I उपेक्षा और अपमान के बदले में भी सहज रहता है, अपनी सौम्यता को बरकरार रखता है । गीत के बदले में गीत हर कोई गुनगुनाता है, पर यदि तुम गाली के बदले में भी अपने गीत को जीवित रख सको, तो यह तुम्हारी आत्मविजय है । प्रेम के बदले में प्रेम देना आम है, पर जो क्रोध के बदले में भी करुणा की कोमलता दर्शाता है, उसी के जीने में मजा है । हम अगर कर सकें, तो अपने मित्रों की भूलों को माफ करें । जो हमें अपना शत्रु मानते है, हम उनके प्रति सद्व्यवहार की मिसाल कायम करें । सहज मिले अविनाशी बड़ा प्रसिद्ध संदेश है— साधो, सहज समाधि भली । समाधि का रहस्य ही सहजता में छिपा हुआ है । हम जीवन को जितनी सहजता से लेंगे, तनाव और चिंता से उतने ही बचे हुए रह सकेंगे। योगी लोग तो हिमालय की कंदराओं में बैठकर समाधि को साधते होंगे, पर मैं तो यह कहूँगा कि हम अगर इस एकमात्र सहजता को आत्मसात कर लें, तो समाधि स्वतः हमारी सहचर रहेगी । हो-हल्ला, ढोल-ढमाका और माइकों पर जोर-शोर से मंत्र-पाठ करने वालों को भला कभी भगवान मिले हैं ? मीरां की पंक्तियाँ कितनी प्यारी हैं - 'सहज मिले अविनाशी' । । 1 वह अविनश्वर जब कभी जिसे मिला है, सहज ही मिला है । यह कितनी मधुर बात है कि जिस कृष्ण की उपासना में सुरेश, गणेश और महेश तत्पर हैं, वह कितनी सहजता से ग्वाल-बालाओं के साथ क्रीड़ारत हो जाता है । नीतिकारों का तो यही अनुभव रहा है —— बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख ।' अथवा इसे यों कह दें- 'चींटी करे न चाकरी, अजगर करे न काम; दास मलूका कह गये, सबके दाता राम ।' संत कबीर का यह पद इस संदर्भ में सहज ही बड़ा संप्रेरक है—' सहज मिले सो दूध सम, माँगा मिले सो पानी; कह कबीर वह रक्त सम, जामे खींचा-तानी । ' आप अपनी नौका को प्रभु पर छोड़कर तो देखें । प्रभु स्वयं हमें उस पार पहुँचाने को आतुर हैं । हम जीवन में आने वाले संकटों को भी प्रकृति की व्यवस्था का ही एक चरण मानें । हम बड़े-से-बड़े संकट को भी बड़ी सहजता से लें । हम स्वयं में एक महान् चमत्कार देखेंगे कि प्रकृति ने हममें एक गहरा आत्म-सामर्थ्य आपूरित किया है । हम बड़े सहज, शांत और निर्भय-भाव से बड़े-से-बड़े संकट का सामना कर जाएँगे । काश, यदि लक्ष्मण अपने क्रोध को अपने काबू में रखते और हर प्रतिकूलता के बावजूद सहज बने रहते, तो शायद लक्ष्मण की आहुतियाँ, उनका त्याग और बलिदान श्रीराम से कहीं अधिक बखाना जाता । गंभीर से गंभीर और भयंकर से भयंकर परिस्थिति में भी अपने आपको सहज-सौम्य बनाये रखना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सबसे बड़ी खासियत दो मंत्र : मन की शांति के लिए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ७१ www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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