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________________ कौन क्या कहता है, इसकी ओर ध्यान देने की बजाय हम इस पर गौर फरमाएँ कि हमें क्या करना है । किसी के द्वारा हमें गलत कहे जाने पर हम गलत थोड़े ही हुए । जो आज हमें गलत कह रहा है, वक्त बदलते कितनी देर लगती है, वही हमें अच्छा भी कहने लग जाएगा। किसी के द्वारा हमें नालायक कहे जाने पर हम उससे भिड़ पड़े, तो निश्चय ही हमने अपनी नालायकी दर्शा दी । बाकी यह तो जगत की व्यवस्था है कि यहाँ सब कुछ प्रतिध्वनित होता है । जो - जैसा हमें कहता है, अगर हम उसे स्वीकार न करें, तो वह उसी पर लौटकर चला जाता है । दुनिया के कहे-कहे ही अगर चलना शुरू कर दिया, तो जीना बड़ा कठिन हो जाएगा। दुनिया न तो किसी को जीने देती है, न ही मरने । जो स्थिति लिक्विड ऑक्सीजन में गिरने के बाद किसी की होती है, हमारी भी वैसी ही हो जाती है । लिक्विड हमें जीने नहीं देता और ऑक्सीजन हमें मरने नहीं देता । दुनिया का तो यह सनातन नियम रहा है कि हम यदि गधे पर चढ़ेंगे, तो भी दुनिया हँसेगी और हम यदि गधे को अपनी पीठ पर ढोएँगे, तो भी दुनिया हमें गधा कहेगी । हम तो वह करें, जिसे हम अपने वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए स्थापित करना चाहते हैं । हम किसी पुरानी लीक पर ही न चलते रहें, वरन् अपनी ओर से भी नई लीक का निर्माण करें, जिससे कि आने वाली पीढ़ी हमारी ऋणी रहे, हमारे पदचिह्नों का अनुसरण करे । प्रतिक्रियाओं की चिनगारियों से बचने के लिए हम समता और सहिष्णुता के स्वामी बनें । औरों की गलतियों को माफ कर सकें, स्वयं में क्षमा का इतना सामर्थ्य लाएँ । हम स्वयं तो किसी की निंदा और आलोचना न ही करें, पर हमारे साथीदार किसी की निंदा करे तो अपनी ओर से बगैर कोई टिप्पणी किये स्वयं को वहाँ से हटा लें । यदि कोई हमारी तारीफ कर दे, तो उसे बड़ी सहजता से लें, वरना हमारा अहम् पुष्ट होता जाएगा । यदि कोई आलोचना करे, तो उसे भी बड़ी सहजता से लें, नहीं तो तुम्हें उत्तेजित और असंतुलित होने से कोई रोक नहीं सकेगा । यह कुदरत की व्यवस्था है कि यहाँ परिस्थितियाँ सदा एक-सी नहीं रहतीं । यहाँ हाल बदलते हैं, हालात भी । शांति का स्वामी वही है जो निरपेक्ष रहता है हर परिस्थिति से । शांति के क्षणों में शांत हर कोई रहता है, जो अशांति के वातावरण में भी शांत बना रहे, उसी की बलिहारी है। हर हाल में मस्त रहो-मन की शांति को आत्मसातं करने के लिए यही सारसूत्र है और यही सार-संदेश | दो मंत्र : मन की शांति के लिए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only M ७३ www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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