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वक्त लगता है । यह चमत्कार हमारी निर्मल दृष्टि व निर्मल सोच से ही संभव हो सकेगा। आओ, हम जीवन में फिर से दीया जलाएँ; घर-घर और घट-घट दीप जलाएँ । शुरुआत अपने आप से करें।
हम अपने क्रोध-आक्रोश का त्याग करें; दुर्वचन-दुर्भाषा का त्याग करें; दुराचार और दुर्व्यवहार का त्याग करें; मन में पलने वाली घृणा और घमंड का त्याग करें । हम पेश आएँ सबके साथ विनम्रता और शालीनता से । हमारा विनम्र प्रस्तुतिकरण लोगों के हृदय में हमारा स्थान बनाएगा। यदि कोई गलत भाषा या गलत व्यवहार का आचरण कर भी डाले, तो हममें इतनी सहन-शक्ति हो कि हम उसे माफ भी कर सकें । परिस्थितियाँ चाहे जैसी उपस्थित हो जाएं, लेकिन ध्यान रखें कि किसी भी परिस्थिति को अपनी प्रसन्नता छीनने का अधिकार न दें । व्यक्ति की शालीनता और विनम्रता ही उसकी मधुरता है; उसकी प्रसन्नता और सहिष्णुता ही उसकी कुलीनता और गुणवत्ता है। आखिर कोई तुम्हारे बोल-बर्ताव, आचार-विचार को देखकर ही कहेगा कि तुम कैसे हो । अच्छाई से बढ़कर कोई ऊँचाई नहीं होती। ऊँचा उठने के लिए अच्छा बनना अनिवार्य पहलू है।
दुनिया में महान से महान लोग हुए हैं। वे हमारे जीवन के आदर्श बनें । संभव है हम उन जैसा आदर्श न भी बन पाएँ, लेकिन उनके आदर्शों के प्रकाश में अपने जीवन की दिशा तो निर्धारित कर ही सकते हैं, पार लग ही सकते हैं । क्यों न तुम मुझे ही अपना मित्र बना लो । शायद मैं तुम्हारी संस्कार-शुद्धि की कोई कीमिया दवा बन जाऊँ । अच्छा गुरु और अच्छा शिष्य—दोनों एक-दूसरे से सीखते हैं । कुछ तुम्हें मुझसे सीख मिल जाए और कुछ मुझे तुमसे । क्या यह निमंत्रण स्वीकार करोगे?
हर नई सुबह हमें संदेश देती है—आओ, हम फिर से कोशिश करें।
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ऐसे जिएँ
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