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________________ जीवन के संपूर्ण सौंदर्य और माधुर्य के लिए केवल उसका रोगमुक्त होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् शारीरिक आरोग्य के साथ विचार और कर्म की स्वस्थता-स्वच्छता और समरसता भी अनिवार्य चरण है । शृंगार-प्रसाधनों को अथवा जूते-चप्पल-सैंडल और कपड़े के ऊँचे-नीचे पहनावे को सुख-सौंदर्य का आधार न समझें । स्वस्थ, सुंदर और मधर जीवन के लिए हमें जीवन के बहआयामी पहलुओं की ओर ध्यान देना होगा। आओ, हम ऐसे कुछ पहलुओं को जीने की कोशिश करें, जिनसे कि हमें हमारे जीवन का स्वास्थ्य मिल सके। स्वस्थ जीवन के लिए सात्विक आहार स्वस्थ जीवन के लिए इस बात का सर्वाधिक महत्व है कि हम क्या खाते-पीते हैं। जब तक व्यक्ति यह नहीं समझेगा कि आहार कब-क्यों और कैसा लेना चाहिए, तब तक व्यक्ति जब-तब रोगों से घिरा हुआ ही रहेगा । आहार जीवन के वाहन का ईंधन है । आहार करने का अर्थ यह नहीं कि जब-जो मिल गया तब वह खा लिया। पेट कोई कूड़ादान नहीं है । सही ईंधन के अभाव में यंत्र की व्यवस्था गड़बड़ा सकती है। स्वस्थ जीवन के लिए भोजन का स्वस्थ-सात्विक होना जरूरी है। आखिर जैसा हम खाएँगे, वैसा ही तो परिणाम आएगा । बर्तन पर जैसा चिह्न उकेरेंगे, वही उभर कर आएगा। मन के परिणाम अगर विकृत हैं, तो मानकर चलो कि तुम जो आहार ले रहे हो उसमें कुछ-न-कुछ विकृति अवश्य है। रक्त-शुद्धि और रक्त-गति के समुचित नियंत्रण के लिए भी आहार की स्थिति और गति पूरी तरह प्रभावी होती है । यह आम समझ की बात है कि जैसा खावे अन्न, वैसा रहे मन । यदि आप शराब पीएँगे, तो शरीर को गति देने वाली कोशिकाएँ सुप्त और अवरुद्ध हो जाएँगी; जर्दा-तंबाकू का इस्तेमाल करेंगे, तो शरीर की हड्डियाँ गलने लग जाएँगी; अधिक भोग-परिभोग किया, तो काययंत्र की मूल ताकत कमजोर हो जाएगी यानी दीर्घ जीवन प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति अपने ही कारणों से अपनी उम्र को घटा बैठेगा । दीर्घ जीवन के लिए तन-मन की शक्ति का संरक्षण और अभिवर्द्धन सहज अनिवार्यता है । हम बासी भोजन, गरिष्ठ अथवा बाजारू भोजन से परहेज रखें । हम हमेशा घर में बना हुआ, ताजा-सात्विक भोजन ही ग्रहण करें । अधिक मीठा, अधिक खट्टा, अधिक नमकीन चीजों के उपयोग पर संयम रख सकें तो ज्यादा बेहतर है। भोजन ज्यादा न खाएँ, यथावश्यक भोजन करना ही स्वस्थ जीवन का मंगल सूत्र है । हाँ, यदि आवश्यकता से दो ग्रास कम ग्रहण करें, तो पेट की आँतों को भोजन पचाने में तनाव का सामना न १० ऐसे जिएँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003895
Book TitleAise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2001
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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