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कि तुम्हारे तेल के कटोरे से एक बूंद तेल भी बाहर नहीं गिरना चाहिए, वरना तुम्हारे पीछे नंगी तलवार लेकर चल रहे सैनिक तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देंगे। वह घबराया, लेकिन करे तो क्या, जब सम्राट का आदेश हो। उस व्यक्ति को तेल से लबालब कटोरा दिया गया। उसके पीछे-पीछे दो सैनिक नंगी तलवार लिये चल रहे थे। वह व्यक्ति शहर में घूमने निकल पड़ा। वह पाँच-छ: घंटे तक शहर में घूमने के बाद वापस राजमहल में पहुँचा।
सम्राट ने पूछा-क्या तुम शहर में घूम आए ? उसने कहा-हाँ राजन्, मैं घूम आया। सम्राट ने पूछा-अच्छा, तुमने शहर में क्या-क्या देखा? उस व्यक्ति ने जवाब दिया-मैं क्या देखता राजन्! मैं तो इसी ध्यान में लगा रहा कि कटोरे से तेल की एक बूंद भी बाहर न गिर जाए। मेरी नजर तो कटोरे पर ही लगी रही, इसलिए मैं कुछ भी न देख पाया। सम्राट भरत मुस्कराए और कहने लगे-जैसे तुम्हारी नजर तेल के कटोरे पर थी, और तुम कुछ भी न देख पाए, उसी तरह मेरी दृष्टि मेरी आत्मा पर केन्द्रित है। यद्यपि मैं संसार में जी रहा हूँ, लेकिन मुझे मेरी आत्मा के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता है। मेरा लक्ष्य आत्म-संबोधि है, आत्म-मुक्ति है। ___ संसार एक चक्र है, जो निरंतर गतिशील है। वह व्यक्ति संसार के चक्र से अलग हो जाता है, इससे मुक्त हो जाता है, जो चक्र के मध्य की कील के समान अडिग रहता है। वह संसार में संयोजित रहकर भी परिभ्रमण से मुक्त रहता है। वह संसार सें संयोजित रहकर भी परिभ्रमण से मुक्त रहता। हम जो ध्यान-सूत्रों कि गहराई में उतर रहे हैं, इनका मूल तात्पर्य यही है कि हम चाहे संसार में जीएं, परिवार के बीच जीएं, सत्ता-संपत्ति बटोरते रहें, पर इसके बावजूद हम इन सभी से निर्लिप्त बने रहें। अगर अपनी दृष्टि आत्मकेन्द्रित बनाए रखोगे, तो धीरे-धीरे संसार-मुक्त हो जाओगे।
व्यक्ति ने मानव-जीवन पाया है, तो इसका अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि वह संसार में रच-बस जाए और जब जिंदगी पूरी हो जाए, तो रवाना हो जाए। इस तरह तो पता नहीं इस आत्मा ने कितने-कितने जन्मों तक यह देह पाई है। कभी इस कुल में कभी उस कुल में पैदा हुए, कभी इस प्रदेश में कभी धरती के दूसरे छोर के अनजाने नगर में जन्म लिया। तुम जहाँ-जहाँ पैदा हुए, वहीं-वहीं का राग कर बैठे। अगर तुम जैन कुल में पैदा हुए, तो तुम्हारा राग महावीर से हो गया, शांतिनाथ और कल्पसूत्र से हो गया; अगर तुम हिन्दू कुल में जन्मे तो तुम्हारा राग राम-कृष्ण, गीता-रामायण और मंदिरों से हो गया। जन्मजन्मांतर से इस शरीर ने जाने कितने-कितने धर्मों का परिवर्तन किया है।
84 : : महागुहा की चेतना
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