________________
चेतना के तल पर मुक्ति हर मनुष्य का अधिकार है । यदि तुम्हें जन्म मिला है तो मृत्यु निश्चित ही होगी, लेकिन अभी तुम जीवन मृत्यु के खेल में लगे हुए हो, पर जिस दिन मुक्ति की अभीप्सा जग जाती है तुम पाते हो यह मुक्ति जीवन का अधिकार है। अगर जीवन पाया है तो मुक्त भी होना है। मुक्ति हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए अपनी क्षमताओं को पहचानो, अपनी संभावनाओं को खोजो। मनुष्य ही एकमात्र सत्ता है जो अपने में असीम संभावनाओं को लिए हुए है; और मुक्त होना उसकी क्षमता है, संभावना है, आत्मा का स्वभाव है। अपने स्वभाव से परिचय बनाओ और मुक्ति के द्वार खोलो।
आखिर कब तक जड़, भौतिक और पुदगल पदार्थों की आसक्ति में जीवनयापन करते रहोगे। अपने स्वभाव को पहचानो, अपनी निस्पृहता को पहचानो
और राग के द्वार से मुक्त होकर विराग में प्रवेश करो। धीरे-धीरे विराग से भी मुक्त होकर वीतरागता में प्रवेश करो। ध्यान का मार्ग राग-विराग से मुक्ति का मार्ग है, वीतरागता की उपलब्धि का मार्ग है। संबोधि-सूत्र कह रहे हैं कि ध्यान की रोशनी पाकर, ध्यान का प्रकाश पाकर हम कर्म-परमाणुओं से स्वयं को मुक्त करें। यह चेतना मुक्त-विहार कब कर सकेगी-'मन की खटपट जो मिटे, तो हो मुक्त विहार ।' मन में जो ऊहापोह हर समय चलती रहती है जब उससे अलग हट जाओगे तभी कुछ हासिल कर पाओगे। अन्यथा तुम्हारा चंचल मन हर जगह कैंची लिए खड़ा रहता है और उसकी कतरब्यौंत चला करती है। ध्यान में डूबकर जब मन की निरंतरता टूट जाएगी, तब चेतना के पंख खुलेंगे। अभी तो मन का हस्तक्षेप जारी है। इसे समाप्त करना होगा। तभी भीतर का नंदनवन पूर्ण रूप से खिलेगा। फिर इस नंदनवन में विचरण करने पर आनन्द की बौछार होगी, उत्सव की गरिमा होगी, जीवन की धन्यता होगी।
आपके जीवन में आनन्द की वर्षा, उत्सव का वातावरण और परम धन्यता की स्थिति निर्मित हो, ऐसी ही मंगलकामना है।
ओम् शांति।
00
82 : : महागुहा की चेतना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org