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________________ मरते क्या न करते। सभी अल्लाह को याद करने लगे। मुल्ला ने भी देखा अब मरना ही है तो उसने घोषणा की कि हे खुदा ! अगर मैं बच गया तो मैंने जो नौ लाख की अटारी बनवाई है वह तुम्हारे नाम कर दूंगा। सभी बहुत आश्चर्य से भर गये कि मुल्ला जिसने कभी कौड़ी भी दान में न दी वह खुदा के नाम पर नौ लाख की कोठी कुर्बान करने को तैयार! और उसने सोचा कि बचने वाले तो हैं नहीं, घोषणा तो कर ही दो। पर किस्मत अच्छी कहिए कि तूफान शांत हो गया और जहाज बच गया। अब नसीरुद्दीन घबराया, क्योंकि सैंकड़ों लोगों के सामने घोषणा की जा चुकी थी। व्यक्ति अगर भीतर-भीतर घोषणा करे तो दबाकर भी रखी जा सकती है और समाज के बीच मंच से घोषणा कर दी जाए, तो न देने की इच्छा होने पर भी शर्म के कारण देना पड़ जाए। मुल्ला का भी यही हाल हो गया। सोचने लगा इससे तो जहाज डूब जाता तो अच्छा रहता, कम-से-कम नौ लाख का महल तो दान नहीं देना पड़ता। फंस गया बेचारा। जहाज के यात्रियों ने गांव पहुँचकर खबर फैला दी कि मुल्ला खुदा के नाम पर अपनी नौ लाख की अटारी दान कर रहा है। रोज लोग आते, उसे उकसाते और कहते अपनी कोठी दान में दे। नसीरुद्दीन ने सोचा बुरे फंसे । अब कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा। फिर एक घोषणा की कि वह अपनी कोठी नीलाम कर देगा और जितना पैसा आएगा वह दान कर देगा। सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए यह जानकर कि मुल्ला कोठी बेचकर सारा पैसा दान कर देगा। गांव के लोग मुल्ला की कोठी के सामने इकट्ठे हो गए। नीलामी की बोली शुरू हो गई तभी नसीरुद्दीन बोला, रुको मेरी एक शर्त है, मेरे पास एक बिल्ली है और इसकी कीमत है नौ लाख रुपये। यह कोठी तो सिर्फ एक रुपये की है और शर्त यही है कि जो इस बिल्ली को खरीदेगा कोठी उसी को दी जाएगी। खैर, बहुत तरह के लोग होते हैं फंस गए मुल्ला की चालबाजी में। बोली लगी, नौ लाख में बिल्ली और एक रुपये में कोठी बिक गई। मुल्ला ने असली रंग दिखाया, मैंने खुदा के नाम पर कोठी दान की थी बिल्ली नहीं, इसलिए मकान का जो एक रुपया आया है उसे खुदा के नाम पर दान देता हूँ और नौ लाख...... | उसकी जेब में पहुँच गए। तुम इस तरह मार्ग निकालते रहोगे, तो कहीं भी न पहुँच पाओगे, जहाँ हो वहीं अटके रह जाओगे। इसलिए संबोधि-सूत्र में कह रहे हैं-'नया जन्म दें स्वयं को अपने अतीत के संस्कारों और विचारों से मुक्त होकर एक नवीनता प्राप्त करो जहाँ सब शुभ और श्रेयस्कर हो। तुम्हारी परमात्मा के प्रति श्रद्धा 80 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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