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सद्गुरु कहा गया जिसका सामीप्य पाते ही हमारी चेतना रूपान्तरित हो जाए, हमारी कलुषता समाप्त हो जाए।
__ हम ध्यान की गहराई में, संबोधि-सूत्रों की गहराई में प्रवेश कर रहे हैं, तो हमारी तरंगें चेतना तक जा रही हैं। अन्तस् का आह्लाद हो रहा है। मौन में सोऽहं नाद मुखरित हो रहा है। शिवोऽहं और अहं ब्रह्मास्मि की रश्मियाँ प्रकट हो रही हैं।
नया जन्म दें स्वयं को सांस-सांस विश्वास ।
छाया दे संसार को पर निस्पृह आकाश।। समय आ गया है कि स्वयं को नया जन्म दें। माँ तो तुम्हें जन्म दे चुकी है, लेकिन जीवन के द्वार से दुबारा जन्म लो। जीवन के द्वार से अतीत द्वारा मुक्त हो जाओ। माँ ने तुम्हें जन्म दिया था उसके पूर्व भी तुम किसी जन्म में थे, लेकिन माँ के द्वारा जन्म दिए जाने पर तुम उन सब बातों को भूल गए, जो कभी थीं, तुम नया जन्म पाते हो। एक जन्म वह है, जो तुम्हें माँ ने दिया और एक जन्म तुम्हें स्वयं लेना है, साधना के द्वारा। 'द्विज' शब्द सुना है न, यानी दोबारा जन्म लेना। जन्म से कोई द्विज नहीं होता। द्विज तो होना पड़ता है। ब्राह्मण जाति नहीं है। ब्राह्मण तो वे होते हैं जिन्होंने ब्रह्म को जान लिया। पहले वे 'द्विज' होते हैं। तब कहीं ब्राह्मण हो पाते हैं। जो साधना के द्वारा स्वयं को नया जन्म देते हैं, स्वयं के ब्रह्म स्वरूप को पहचान पाते हैं, तब कहीं जाकर ब्राह्मण बनते हैं।
नया जन्म कैसे हो? साधना के द्वारा नया जन्म हो। अभी तक जो संस्कार, वृत्तियाँ, कटुता, वैर-विरोध के भाव हमारे अंदर विद्यमान हैं, उन को विस्मृत कर सकें, इसलिए नया जन्म लें। जिस तरह पूर्वजन्म की स्मृतियाँ इस जन्म में नहीं रहती हैं, उसी तरह इस जन्म में एक और जन्म लेकर इस जन्म की दुष्प्रवृत्तियों को, इस जन्म के मायाजाल को विस्मृत कर दें। महागुफा में बैठा साधक हमें प्रेरित कर रहा है कि पुनर्जन्म हो। अभी तक तो शरीर का जन्म हुआ था, अब जीवन का जन्म हो ताकि हमारे भौतिक संस्कार क्षीण हो जाएं। अन्यथा हम नित नवीन मार्ग खोजते रहेंगे और संसार में प्रवृत्त होते रहेंगे।
मुझे याद है : मुल्ला नसीरुद्दीन हज की यात्रा पर गया। यात्रा के भाव तो थे नहीं, बस गांव के लोगों ने प्रेरित कर दिया तो रवाना हो गया। हज कर लिया। वापसी के समय पानी के जहाज से आ रहा था कि अचानक समुद्र में तूफान उठा। तूफान इतना तीव्र था कि सभी ने जीने की आशा छोड़ दी।
मुक्ति : प्राणिमात्र का अधिकार : : 79
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