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________________ मैं देख रहा हूँ कि तुम हृदयवान होना ही नहीं चाहते। हाँ, दिखावा जरूर करोगे करुणा, दया, प्रेम, क्षमा का, लेकिन क्रोध की किरण लौ बनकर लपकती ही रहती है और तुम्हारी बेहोशी इतनी गहन है कि तुम बार-बार क्रोध करके भी क्रोध से उबर नहीं पाते । क्रोध ने तुम्हारे मित्रों से तुम्हें दूर कर दिया, क्रोध ने पिता को पुत्र से अलग कर दिया, आप सब जानते हैं क्रोध के कारण न जाने कितने दुष्परिणाम हुए, फिर भी क्रोध से मुक्त न हो पाए। यह हमारी बेहोशी है। इस बेहोशी ने हमें चारों ओर से घेर रखा है। हर पल बेहोशी को हमने नियति बना लिया है और कुछ नहीं तो शराब पीकर बेहोश हो रहे हैं फिर चाहे जितने उपदेश दो, कितनी प्रेरणाएँ दो, शुभ संदेश दो सब बाहर ही रह जाते हैं। उसकी बेहोशी बहुत गहरी है । T मुझे याद है, मुल्ला नसरुद्दीन रोज शराब पीकर देर रात तक घर वापस आता। पत्नी परेशान । रोज-रोज देर से घर आना । पीकर दोस्तों की महफिल में बैठे रहना और जब वे जाएं, तो घर आना । पत्नी करे भी तो क्या । देर से आना और दरवाजा बजा-बजाकर पत्नी की नींद खराब करना । पत्नी की सहनशक्ति की भी सीमा थी । माना कि तुम पति हो, लेकिन उस पर जुल्म करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है । यह उसके साथ सरासर अन्याय है, लेकिन नसीरुद्दीन को विवेक कौन दे ? अब पत्नी सोए तो कैसे सोए ? फिर उसने ही उपाय सुझाया और कहा अब तुम बाहर से ताला लगाकर चाबी साथ ले जाया करो। फिर तुम्हारी मर्जी हो, वापस आओ और ताला खोलकर भीतर आ जाओ। रोज मेरी नींद खराब करते हो, अब बहुत हो गया । मुझे आराम से सोने दिया करो। रोज-रोज की चखचख से बचने के लिए मुल्ला ने पत्नी की बात स्वीकार ली। ठीक है इसमें परेशानी भी नहीं है, अब मैं चाहे जब आऊं, महफिल से जल्दी उठना भी न पड़ेगा, मुल्ला ने मन ही मन सोचा । I अब तो मुल्ला और देर से घर आने लगा । चाबी तो उसी के पास थी । एक दिन उसने कुछ ज्यादा ही पी रखी थी । जैसे-तैसे घर पहुँचा और चाबी हाथ में लेकर दरवाजे पर लगा ताला ढूंढ़ने लगा । ढूंढ़ते-ढूंढ़ते दरवाजा खटखटाने लगा। पत्नी जागी और पूछा क्या बात है, चाबी खो गई है क्या, दूसरी चाबी दूं। नसीरुद्दीन ने कहा, चाबी तो मेरे हाथ में है ताला खो गया है, अगर हो सके तो दूसरा ताला फेंक दे। बेहोशी इतनी गहरी है । तुम्हारे पास जो क्षमताएँ हैं वे किसी अन्य जीव के पास नहीं हैं। देव-दानव, पशु-पक्षी सभी इससे वंचित हैं। रामायण में तुलसीदास मुक्ति: प्राणिमात्र का अधिकार :: 75 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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