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सद्गुरु बांटे रोशनी
गौतम बुद्ध के समय की घटना है कि एक युवक को उनके पास ले जाया गया। वह युवक जन्मांध था और उसे विश्वास था कि प्रकाश है ही नहीं। सब लोग समझाते कि तुम देख नहीं सकते, इसलिए प्रकाश तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। वह कहता कि 'मुझे प्रकाश का स्पर्श करा दो, उसकी गंध सुंघा दो, उसकी ध्वनि ही सुना दो या फिर उसका स्वाद ही चखा दो।' प्रकाश की गंध, स्पर्श, ध्वनि या स्वाद नहीं होता, फिर उसे अनुभव कैसे कराया जाये। लोग उसे समझाते, लेकिन उसका भ्रम नहीं टूट पाया। भगवान बुद्ध से पूछा गया कि इसकी समस्या का समाधान कैसे हो? भगवान ने कहा-इसकी दृष्टि, चिकित्सा कराओ। इसके भीतर प्रकाश की प्यास है और यह जरूर प्रकाश उपलब्ध करेगा। उस युवक को चिकित्सक के पास ले जाया गया। बुद्ध के कथनानुसार इलाज करवाया गया। छ: माह के उपरान्त वह युवक देखने योग्य हो गया। उसकी आँखें ठीक हो गईं।
__ वह शीघ्रता से बुद्ध के पास पहुँचा। उन्हें प्रणाम किया। भगवान ने पूछा, "युवक ! बोलो, तुम्हें प्रकाश देखना है, उसे सूंघना है, चखना है या स्पर्श करना है ?" युवक ने कहा, भगवन्, क्षमा करें। भीतर अंधेरा था, इसलिए अंधेरा ही दिखाई देता था। जब से ज्योति मिली है, सब कुछ ज्योतिर्मय हो गया है।
सद्गुरु जीवन में इतना ही काम करते हैं । जब-जब हम अंधकार में होते हैं, अन्तरमन में भ्रांतियों का जाल होता है, तब-तब सद्गुरु प्रकाश की किरण दिखाते हैं, हमें भ्रांतियों से मुक्त करते हैं। मनुष्य इस जगत् में जो जीवन जी रहा है, वह उसके द्वारा फैलाई गई भ्रांतियाँ हैं। इसीलिए वह इस
62 : : महागुहा की चेतना
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