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________________ भी यही बनता है। आदमी जीवन भर तक मन से जुड़ा हुआ तो रहता है, लेकिन थोड़ी देर के लिए भी मन से मुक्त नहीं रहता। चौबीसों घंटे मन के चलाए चलते हो, लेकिन थोड़ी देर के लिए भी तुम मन को नहीं चला सकते। मन के साथ वर्षों से जी रहे हो, थोड़ी देर मन से अलग होकर भी जीने का अभ्यास किया जाना चाहिए, ताकि मन को भी थोड़ा विश्राम दिया जा सके। तुम यह मत समझना कि रात को तुम सोये, तो मन भी सो गया। नींद लेते हो, शरीर को आराम मिल जाता है, लेकिन मन फिर भी सक्रिय रहता है। नींद में तुम्हारे चिंतन चालू रहते हैं, मन तनावग्रस्त रहता है। स्वप्न आते रहते हैं। कुछ लोग तो रात भर सपने देखते रहते हैं। परिणामतः आदमी नींद नहीं ले पाता, सपने देखता रह जाता है। यह मत समझना कि तुम सात घंटे सोओ या आठ घंटे सोओ तो वास्तव में सात घंटे सो ही रहे हो। अगर सात घंटों में से चार घंटे तुमने सपने देखे हैं, तो तुम्हारी नींद केवल तीन घंटे की रहेगी। आदमी सुबह उठता है और कहता है कि आठ घंटे सोया पर दिमाग हल्का नहीं हुआ। हम अगर संबोधि-ध्यान भी करते हैं, तो उसका मुख्य लक्ष्य यही है कि मन को आराम मिले । अगर ध्यान थोड़ा सध जाये, तो स्थिति यह हो सकती है कि हम मन को आराम से सुला सकें। अतीत की स्मृतियाँ और मन की कल्पनाएँ, यही तो मन की चंचलता का प्रमुख कारण है। यह हमारे चिंतन का अधूरापन है कि हम अगर यह सोचें कि अतीत की स्मृतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ साथ न होंगी तो जीवन अर्थहीन हो जाएगा। फिर कैसे घर की स्मृति रहेगी और कैसे भविष्य की योजनाओं का निर्माण कर पाएंगे। थोड़ी देर के लिए मन का कायाकल्प करके इस जंजाल से मुक्त होकर तो देखो, जीवन कितना आनन्दमय हो जाता है। और स्मृतियाँ ! तुम सोचते हो कि मेरी सार्थक स्मृतियाँ हैं ? अगर सुबह से शाम तक चलने वाली स्मृतियों को किसी कागज पर उतारो, तो खबर लगेगी कि कैसी उधेड़बुन चल रही है। जिन स्मृतियों का तुम्हारे जीवन के साथ कोई ताल्लुक नहीं है, ऐसी स्मृतियों को तुम पाले चले जा रहे हो और ऐसी-ऐसी कल्पनाएँ कर रहे हो, जिनका कि जीवन के साथ कोई ताल्लुक नहीं है। कोई आवश्यक स्मृति और कल्पना हो और उसे जीवित रखो, तो बात जमती भी है, अनावश्यक कल्पना और स्मृति हमारी शक्ति का अपव्यय है और तनाव का सृजन करना है। निश्चित तौर पर मन सोचने के लिए है और उसका उपयोग किया भी जाना चाहिए, पर अर्थहीन विचारों को साथ लिए चलना, मन का दुरुपयोग ही कहलाएगा। अब तुम मंदिर में बैठे हो माला जपने के लिए, थोड़ी करें, मन का कायाकल्प : : 39 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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