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करें, मन का कायाकल्प
मन की तीन गतिविधियाँ हैं-स्मृति, कल्पना और चिन्तन । अतीत स्मृति है, भविष्य कल्पना और वर्तमान चिन्तन है। मन की गतिविधियों को विस्तार देने में तीनों की सर्वाधिक भूमिका है। मन की चंचलता के तीन सूत्र हैं। जब ये विकृत होते हैं, तो मन विकृत होता है। जब ये सुकृत होते हैं, तो मन सुकृत होता है और जब ये मुक्त हो जाते हैं, तो मन मुक्त हो जाता है। ___मन को साधना या मन के पार पहुँचना साधक का प्रमुख ध्येय होता है। वे लोग न तो मन को समझ पाते हैं और न ही साध पाते हैं, जो आजीवन मन की चंचलताओं की उलझन में उलझे ही रह जाते हैं। मन की गहराई तक पहुँचे बिना उसकी वास्तविकता का बोध नहीं किया जा सकता। हम कल्पना करें, ऐसे किसी मन की, जिस मन के साथ जीकर हम शांतिपूर्ण जीवन को उपलब्ध कर लें। जीवन भटकावपूर्ण होने की बजाय समझपूर्ण हो, शांतिपूर्ण हो। इसके लिए पहले चरण में मन को समझें। दूसरे चरण में उसे सु-मन बनाएं और तीसरे चरण में अ-मन दशा को उपलब्ध हो जाएं।
निश्चित तौर पर मन मनुष्य के बंधन का मूल निमित्त है। उलझा हुआ मन बंधन है, लेकिन यही मन जब सुलझ जाता है, अ-मन दशा को उपलब्ध हो जाता है, तो मुक्त हो जाता है। जिसके अन्तर्मन में व्यग्रता है, उसे अगर एकांतवास दे दो, तो वह विक्षिप्त हो जाएगा और जिसके मन में एकाग्रता है, साधना की अभीप्सा है, वह एकांतवास पाकर बुद्ध बन जाएगा।
मैंने मन के तीन चरण दिये-स्मृति, कल्पना और चिंतन । मनुष्य प्रायः या तो स्मृति में जीता है या कल्पनाओं में जीता है। मन की उधेड़बुन का निमित्त
38 : : महागुहा की चेतना
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