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प्रकार की मशीनें हैं उन सभी से श्रेष्ठ मशीन तो हमारे अंदर है। सुव्यवस्थित संचालन पद्धति है इस मशीन की। जिसने इस शारीरिक मशीन का निर्माण किया है उस इंजीनियर के प्रति मैं नतमस्तक हो गया। बाहर की मशीनें तो बेजान हैं, लेकिन हमारी मशीन अविरत गतिमान है। उसे ऊर्जा कहाँ से मिलती है ? उस अनन्त अंतरिक्ष से जो भीतर ही मौजूद है।
ऊर्जा का अक्षय भण्डार जहाँ हो वहाँ तो रास होना ही चाहिए । भगवान कृष्ण के साथ जिस रासलीला की कल्पना की गई है वह तो तुम्हारे अंदर घटित हो रही है। परम चैतन्य के आसपास ही तो तुम्हारी चेतना नृत्य कर रही है। प्राचीन प्रतीक बहुत सुन्दर हैं। कृष्ण तो उस पर भगवत्ता के प्रतीक हैं जिसमें तुम्हारी भगवत्ता को समाहित होना है। तुम्हारा हृदय ही वह वृन्दावन है, जहाँ महारास का आयोजन होना है। तुम्हारी चेतना नृत्य रचाएगी परम पुरुष के साथ। तब तुम्हारे अंदर आनंद, उत्सव और धन्यता प्रकट होगी।
अभी हम संबोधि-सूत्रों की भूमिका में प्रवेश कर रहे हैं यह नींव है और नींव मजबूत होनी चाहिए। इसलिए गहनता से, गम्भीरता से इन सूत्रों में प्रवेश करें फिर जब हम ध्यान की गहराई में उतरेंगे तो उन सूत्रों की सार्थकता प्रकट होगी। ये सूत्र साकार होकर जीवन के रहस्यों की परत खोलेंगे। और आपका जीवन परमात्म-चेतना की आनंद अनुभूति से भर जाएगा। आप स्वयं को पूर्णतया निर्भार, निर्मल और पवित्र अनुभव करेंगे। यह सुखानुभूति आपको यथाशीघ्र हो, ऐसी मंगलकामना है। ओम् शांति, शांति, शांति।
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काया मुरली बाँस की : : 37
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