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________________ जिस दिव्यता का साक्षात्कार भगवान ने स्वयं किया, लेकिन वे भी उसे वर्णित नहीं कर सके, उसे सामान्यजन कैसे अभिव्यक्त कर सकता है। यह तो 'गूंगे केरी सर्करा' है, जो गहन अंधकार में भी जाज्वल्यमान रहती है। इसलिए ध्यान वह प्रक्रिया है जहाँ तुम कुछ नहीं कर रहे हो और जो कर रहे हो उससे मुक्त हो जाओ तो चेतना की ज्योति का दर्शन हो जाये। जब तुम कुछ नहीं कर रहे हो तो निर्विचार, निर्विकल्प दशा में तुम्हारी बाह्य समस्याएँ तिरोहित हो जाती हैं और तुम चैतन्य, मुक्त और आनन्दमय हो जाते हो। तुम्हारा जीवन तो कोरा कागज है तुम जो चाहो, वह इसमें लिख सकते हो। अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम अपने जीवन का इतिहास कैसा लिखना या लिखाना चाहते हो। तुम्हारा जन्म कोरे कागज जैसा हुआ है, इस पर तुम कैसी लकीरें खींचते हो यह तुम्हारे ऊपर है। जन्म तो सत्य को लेकर हुआ है, लेकिन तुम इसमें झूठ का मिश्रण किये चले जाते हो। गीतों का सृजन करो या गालियों का निर्माण, यह तुम्हारे हाथ में है। दिव्यता ने तुम्हारे हाथ में दियासलाई दे दी है, अब इससे तुम दीपक जलाते हो या झोंपड़ी, यह तुम देखो। बनाना चाहते हो या मिटाना ! आज के सूत्र हैं कोरा कागज जिंदगी, लिख चाहे जो लेख। इन्द्रधनुष के रूप-सा, हो अपना आलेख।। ज्योति-कलश है जिंदगी, सबमें सबका राम। भीतर बैठा देवता, उसको करो प्रणाम ।। काया मुरली बांस की, भीतर है आकाश। उतरें अन्तर् शून्य में, थिरके उर में रास।। आज के सुनहरे सूत्र बिल्कुल ऐसे हैं जैसे कोई हिमालय की तलहटी में खड़े रहकर हिम-शिखरों पर पड़ती हुई सूर्य-रश्मियों से चमकते उत्तुंग शैलशृंगों को निहारे। हिमाच्छादित भोर के सौन्दर्य की तुलना तुम किससे करोगे? ये जीवन के सूत्र भी ऐसे ही हैं जो अतुलनीय हैं। ये वे शिखर हैं जहाँ पहुँचना जीवन का लक्ष्य है। 'कोरा कागज जिंदगी, लिख चाहे जो लेख, इन्द्रधनुष के रूप सा हो अपना आलेख' | परमात्मा ने जब तुम्हें यहाँ भेजा, तुम बिल्कुल कोरे थे। तुम्हें किसी भी बात का पता न था। न तुम सत्य बोलते थे, न झूठ कहते थे, न तुम ईर्ष्या जानते थे, न प्रेम का कोई पता था, किसी करुणा या क्षमा से भी तुम्हारा परिचय नहीं हुआ था। बिल्कुल कोरे, एकदम अछूते थे। 32 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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