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________________ में होता है, उसका आभामण्डल क्रमशः शुक्ल लेश्या तक पहुँचता है। जैसेजैसे विचारों में रूपांतरण होता है, व्यक्ति का आभामण्डल प्रभावित होता रहता है। मनुष्य तो प्रभावित होता ही है, वनस्पति भी अप्रभावित नहीं रह पाती। यदि तुम प्रेम और अनुराग से भरकर पौधों के पास जाओ तो उनका विकास त्वरित गति से होता है और क्रोधित मन से, उन्हें काटने के भाव से पौधों के पास जाओ तो उनकी कोशिकाएँ सिकुड़ जाती हैं। वे भी भयभीत हो जाते हैं, कुम्हलाने और काँपने लगते हैं। विज्ञान कहता है हमारी वाणी की तरंगें ही नहीं, विचारों की तरंगें भी सृष्टि में फैलती है। इसलिए जब आप ध्यान की गहराई में प्रवेश करेंगे तो वह कक्ष भी ध्यान से आच्छादित हो जाएगा। ___ आपने कभी ख्याल किया कि संतगण हिमालय की गुफाओं में ध्यानसाधना क्यों करते हैं। वे गुफाएँ ध्यान की ऊर्जा से इतनी पूंजीभूत हो चुकी हैं कि वहाँ प्रवेश करते ही परम शांति का अनुभव होता है। आपके तीव्र विचारों का शमन हो जाता है, आप नई अनेरी ऊर्जा का अनुभव करते हैं। क्यों ? इसलिए कि वहाँ हजारों वर्षों से इतने ऋषि-मुनियों ने साधना की है, कि उनकी ऊर्जा वहाँ घनीभूत हो चुकी है। वहाँ के कण-कण में चेतना की तरंग तरंगित होती है। और जब आप वहाँ प्रवेश करते हैं तब वहाँ के सूक्ष्म परमाणु आपको आंदोलित कर देते हैं। आज विज्ञान ने जितनी तरक्की की है, उससे आप ध्वनिनिरोधक कक्ष का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें बाहर की कोई भी आवाज प्रवेश न कर सके, वह कक्ष शांत तो होगा, पर ऊर्जामय और चेतना की सघनता को साथ लिए न होगा। और हिमालय की गुफाएँ, वहाँ ऊर्जा का, चेतना का जीवंत संचरण होता है। इसलिए अपने घर में एक ध्यान-कक्ष अवश्य बनवाना और वहाँ प्रतिदिन सुबह और शाम नियमित रूप से ध्यान करना। ध्यान में कुछ नहीं करना है। बस, अपनी चेतना को निहारना है, अपनी दिव्यता को परखना है और भीतर के अंधकार में जो प्रकाश की किरण छिपी हुई है, उसे पहचानना है। पहली बार जब हम भीतर झांकते हैं तो गहन अंधकार ही नजर आएगा, लेकिन जितना घना अंधेरा होगा, प्रकाश भी उतनी ही जल्दी अवतरित होगा। जितनी गहरी रात होती है, भोर उतनी ही सुहानी होती है। ध्यान का इतना ही ध्येय है कि तुम मन से मुक्त हो जाओ, विचारों से मुक्त हो जाओ, देह-भाव से मुक्त हो जाओ और जब इन तीनों से मुक्त हो जाओगे, वही घड़ी चेतना के निजानंद स्वरूप में लीन होने की घड़ी होगी। संबोधि-सूत्र की गहराई में उतरने का अर्थ यही है कि व्यक्ति अपने जीवन के अज्ञान को पहचाने, जीवन की अच्छाइयों को और बुराइयों को पहचाने 24 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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