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भोले-भाले प्राणी ! तुम तो अध्यात्म और ज्ञान के पंडित हो चुके हो। अनुभव कुछ नहीं, लेकिन पुस्तकीय ज्ञान से घंटों प्रवचन जरूर दे सकते हो। पूछने पर झूठ भी बोल सकते हो, लेकिन जिसने पहली बार अध्यात्म के द्वार पर दस्तक दी हो वह भला झूठ कैसे बोल सकता है। कहने लगे-महाराजजी, ध्यान में हम एक-दूसरे का चिंतन करते हैं। सप्ताह में एक बार मिल पाते हैं-दो सौ किलोमीटर की दूरी है।
तुम ध्यान भी करोगे, तो इसी प्रकार । पति-पत्नी का ध्यान कर रहा है, पत्नी-पति का ध्यान कर रही है। बहुधा ऐसा होता है कि व्यक्ति गहरी एकाग्रता में चला जाता है। तुम जब रोकड़े गिनते हो और तुम्हें आवाजें दी जाएँ तो क्या तुम सुन पाते हो? लेकिन इसे ध्यान की एकाग्रता नहीं कहा जाएगा। एकाग्रता अवश्य है, पर ध्यान नहीं। ध्यान तो मनुष्य के भीतर के द्वार का उद्घाटन है, लेकिन ध्यान में उतरकर यदि अन्तस् के द्वार पर दस्तक न दे पाए तो ध्यान का क्या लाभ ! तुम आधा घंटे एक ही मुद्रा में निश्चल बैठे रहे, लेकिन मन की तरंगें यथावत चलती रहीं, बाहर से शांत और अंदर से उद्विग्न होते रहे, तो भीतर कैसे पहुँच पाओगे? तुम्हारी ऊर्जा तो इन उद्वेगों को परास्त करने में ही लग जाएगी। तुम वर्षों से धर्म और कर्म कर रहे हो, लेकिन क्या तुमने हल्का-सा भी चेतना का स्पर्श पाया है ? क्या तुम कभी आत्मा को छू पाए? क्या तुम सुख और दुख की घड़ी में ध्यान में रहकर भीतर के आनन्द को उपलब्ध कर पाए ? नहीं कर पाए। करना चाहोगे?
अपने घर में एक प्यारा-सा ध्यान-कक्ष बनवाओ। प्रायः सभी लोग एक छोटा-सा कक्ष भगवान के लिए बनवाते हैं। भगवान के साथ-साथ ध्यान के लिए भी एक कक्ष बनवाओ। और प्रतिदिन उस कक्ष में बैठकर ध्यान धरने की कोशिश करो। कभी तो स्वयं में उतर ही जाओगे। और जब प्रतिदिन एक ही स्थान पर बैठकर ध्यान करते हो, तो कुछ अरसे में वह स्थान इतना ऊर्जस्वित, इतना चेतनामय और इतना जीवन्त हो जाएगा कि कभी कोई दूसरा व्यक्ति जो ध्यान नहीं कर रहा, वह भी वहाँ एक विशिष्ट प्रकार की तरंगों को महसूस कर पाएगा। भयंकर अशान्त व्यक्ति भी उस स्थान पर जाकर परम शांति का अनुभव करेगा। इस बात को विज्ञान ने भी प्रमाणित किया है। महावीर जिसे लेश्या कहते हैं वह मनुष्य के विचारों से उद्भूत आभामण्डल ही है। जैसे विचार होते हैं, वैसे ही आभामण्डल अपने रंग बदलता है। महावीर कहते हैं कि जब व्यक्ति अनुचित और कषाय के विचारों में होता है तब उसके कृष्ण लेश्या होती है, उसका आभामण्डल काले रंग का होता है। और जब व्यक्ति उज्ज्वल विचारों
सातों दिन भगवान के : : 23
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