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________________ चलो मैं कुछ दिन बाहर घूमकर आता हूँ। पुत्र से कहा, बेटा क्लिनिक सम्भालो, मैं बद्री-केदार की यात्रा कर आता हूँ। बेटे ने स्वीकृति दे दी। वह क्लिनिक गया। वहाँ जो पहला मरीज मिला वह एक महिला थी, जो बहुत सम्पन्न प्रतीत होती थी और जिसका इलाज उसके पिता पिछले छ: वर्षों से कर रहे थे। बेटे ने जाँच की और कहा यह रोग तो छः दिनों में ठीक हो सकता है। उसने सोचा कि इसे शीघ्र स्वस्थ कर दूँ और पिता को बताऊँ कि जिस रोग का इलाज आप पिछले छ: सालों से कर रहे थे, उसे मैंने छः दिनों में ही ठीक कर दिया। उसने ऐसा ही किया। वह महिला ठीक हो गई और उसे खूब आशीष दी। बेटा प्रसन्न हो गया। पिताजी भी लौटकर आ गए। उन्हें अपने काम के बारे में बताया कि छः दिनों में ही वह रोगी महिला भली-चंगी हो गई। डॉक्टर पिता ने कहा-मैं चाहता तो उसे तीन दिन में ठीक कर सकता था, लेकिन बता अगर वह तीन दिन में ठीक हो जाती, तो तेरी विदेश में पढ़ाई के लिए पैसा कहाँ से आता। स्वार्थ में समाया है संसार। यह मेरे-तेरे का भाव जब तक विद्यमान है तुम कभी नहीं जान पाओगे कि जगत् तो उस एक का ही विस्तार है। मेरेतेरे की संकीर्णता के घेरे से जब तक बाहर नहीं निकलोगे, जगत के विस्तृत सौन्दर्य को कैसे पहचान पाओगे? संसार की सभी कामनाएँ और वासनाएँ मेरे-तेरे के भाव से ही जुड़ी हुई हैं और जब तक ये सब तुम्हारे साथ हैं, तुम शायद ही कभी उस परम चेतना और परम दिव्यता को उपलब्ध कर पाओ। एक बात और ख्याल रखना तुम जीवन भर भी यदि मेरेपन के भाव तुष्ट करते रहोगे, तब भी यह संतुष्ट होने वाला नहीं है। यह केवल इस ज्ञान के हो जाने पर ही संतुष्ट होगा कि तुमने अभी तक 'मेरा' करके कितना पाया? और अब तक न पा सके तो आगे कैसे पा सकोगे? यह भान हो जाने पर ही तुम मेरेपन के कीचड़ से बाहर आ सकते हो। और यह ज्ञान मिलेगा ध्यान के द्वारा। ध्यान में जब तुम चीजों को देखना शुरू करते हो तो उनकी निरर्थकता साकार होने लगती है। ध्यान की गहराई में जाकर ही तुम मेरे-तेरे के भाव से मुक्ति पा सकते हो। ध्यान के गौरीशंकर पर बैठा साधक देख रहा है कि जब तक तुम मेरेपन से घिरे रहोगे तब तक साधना की गहराइयों के निकट पहुँचकर भी उस प्रभुता को पाने से वंचित रह जाओगे, जो जीवन का लक्ष्य है। तुम्हारी हालत तो उस व्यक्ति जैसी है जो रात के अंधकार में किसी गड्ढे में गिर जाता है। गिरतेगिरते उसके हाथ में पेड़ की जड़ें आ जाती हैं और रात भर वह जड़ पकड़े हुए खड़ा रहता है कि जड़ें छोड़ी, तो गड्ढे में गिर जाऊंगा और गड्ढा न बाँहों भर संसार : : 15 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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