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तो भीतर की गुफा में अमृत की बूंदें झरती हैं। बिन बाजा झंकार उठती है और व्यक्ति ध्यान की, साधना की पराकाष्ठा में पहुँच जाता है।
व्यक्ति इतनी गहराई में उतरा, उसे पहला लाभ यही हुआ कि व्यक्ति की मन की दशाएँ शांत हो गईं। हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या हमारा मन है। कारण, हम मन को जगा नहीं पाए। और जब व्यक्ति के मन में बिन बाजे के झंकार उठनी शुरू हो गई, अंतस् के आकाश में प्रवेश कर लिया, भीतर में मुस्कान उठ गई, वहाँ उसके जीवन में मन की सारी दशाएँ शांत हो गईं। मन के सारे उद्वेग शांत हो गए। और जब मन शांत हुआ तो आत्मविश्वास जाग्रत होगा। एक ऐसा विश्वास जहाँ सारा जग, सारा अस्तित्व ही अपना हो जाएगा। और जिस अनहद नाद और अमृत की बात कबीर करते हैं, वह हमारे पात्र में भी भरना शुरू हो जाएगा। हमारी चेतना पूर्णता से भर उठेगी और अनंत आकाश का शून्य हमारा अपना शून्य हो जाएगा।
शांत हुई मन की दशा, जगा आत्मविश्वास।
सारा जग अपना हुआ, आँखों भर आकाश। फिर तो सारा जगत हमारा अपना हो गया, हमारी आँखों में ही समग्र आकाश उतर आया।
आपकी चेतना पूर्णता की ओर बढ़े इसी शुभकामना के साथओम् शांति-शांति-शांति ।
अन्तस् का आकाश :: 9
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