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वह कौन है जो अन्तस् के आकाश में चुप बैठा है। वह कौन है जो अन्तर की महागुफा में मौन, शून्य के गीत गुनगुना रहा है। उस 'कौन' की खोज का नाम ही साधना है। संबोधि-सूत्र की शुरुआत ही तुम्हें कुरेदने से हो रही है, भीतर के जगत में सीधा प्रश्न उतारा जा रहा है कि वह कौन है। वह कौन है जो आकाश में बदलियों की आवाजाही के बावजूद, बादलों के गरजने और बिजलियों के चमकने के बावजूद सबसे अलिप्त, सबसे निस्पृह बना हुआ है। वही है वह, जो अन्तस् के आकाश में आत्म-स्थित है, चुप है, मौन है। वही है वह, जो जीवन की महागुफा में शून्य के गीत गुनगुना रहा है।
ध्यान का मूल लक्ष्य, मूल गंतव्य क्या है ? तो तलाश शुरू हुई अंतस् के आकाश से। जो भीतर के मंदिर में शांत बैठा है, मौन बैठा है, इसके बावजूद वह अनंत आकाश की यात्रा प्रारम्भ कर रहा है। वह आकाश अंतर का आकाश है, भीतर का आकाश है। ____ मनुष्य सृष्टि की पूर्ण इकाई है। सृष्टि के निर्माण में पंचतत्त्वों का योग है। मनुष्य का निर्माण भी इन्हीं पंचतत्त्वों से हुआ है। मनुष्य के निर्माण में पृथ्वी का हाथ है, क्योंकि उसकी काया मिट्टी की है; मनुष्य के निर्माण में अग्नि का हाथ है, क्योंकि उसके भीतर उष्णता है; मनुष्य के निर्माण में सागर का हाथ है, क्योंकि मनुष्य के भीतर जल है; मनुष्य के भीतर आकाश है, क्योंकि उसके भीतर शून्य है। सृष्टि के हर अंश के सामूहिक संगठन से मनुष्य की निर्मिति होती है।
मनुष्य जिन्दगी की नई यात्रा प्रारम्भ कर रहा है, तो उसका पहला चरण है-'अन्तस् के आकाश में। यह यात्रा भीतर उतरने की, अन्तसौन्दर्य को पहचानने की है। जब तक भीतर न उतरा, अंतर के आकाश का बोध नहीं हुआ। तब भले ही अध्यात्म, धर्म, सम्प्रदाय के करीब चले जाओ, लेकिन हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला है। मैंने सुना है, एक अधिकारी को आदेश मिला कि वह अमुक जिले के अमुक क्षेत्र में जाकर देखकर आए कि वहाँ आलू की खेती कैसी हुई है ? अधिकारी उस जगह पर गया और लोगों से पूछा कि आलू के खेत कहाँ हैं ? उसे खेत बता दिए गए। वह खेतों में पहुँचा और देखने लगा, चारों ओर नजर घुमाई पर कहीं कोई आलू दिखाई नहीं दिया। वहाँ तो पत्ते लहलहाते दिखे। उसने पौधों को, पत्तों को बारीकी से देखा, मगर आलू कहीं नहीं थे। वह थक-हारकर गाँव में पहुँचा और शिकायत की। एक गाँव वाला उसे फिर से खेतों में ले गया। वहाँ उसने पौधे के पास की थोड़ीसी मिट्टी हटाई और आलू निकालकर उस अधिकारी के हाथ में रख दिया।
6 : : महागुहा की चेतना
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