SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गेट के बारे में। बच्चे हमेशा सिर हिलाकर 'नहीं कह देते। तब वह उन सबको बेवकूफ घोषित करके चल देता। व्यक्ति के अहंकार का तब पोषण होता है, जब उसके आगे कम ज्ञानी व्यक्ति आ जाए । __एक दिन की बात है कि वह व्यक्ति बाहर जा रहा था। उस दिन बच्चों ने उसे घेर लिया और कहा-हमेशा आप हमसे सवाल करते हैं और हम जवाब देते हैं, मगर आज हम प्रश्न करेंगे और आपको जवाब देना होगा। अच्छा, बताइए-क्या आप रामू के बारे में जानते हैं ? वह बेचारा सकपका गया। उसने कहा–राम्! यह रामू कौन है ? बच्चे कहने लगे-क्या तुम रामू को नहीं जानते? जब तुम घर के बाहर भटकते रहते हो तो एक आदमी तुम्हारे यहाँ आता है, उसी का नाम रामू है। घर में रहो तो मालूम चले कि पीछे क्या हो रहा है। ___व्यक्ति दिनभर बाहर भटकता रहता है, सारी दुनिया की जानकारियाँ इकट्ठी कर लेता है, पर उसे यह नहीं मालूम कि उसके अपने भीतर क्या है ? काश ! व्यक्ति जान पाए कि उसका मूल उत्स क्या है ? वह कहाँ से आया है, उसे कहाँ जाना है? वह कौन है, उसका लक्ष्य क्या है ? आने वाले दिनों की यात्रा आत्म-संवाद, आत्म-बोध का प्रयास होगी, संबोधि-सूत्र को स्वीकार करने की एक कोशिश होगी। संबोधि यानी सम्यक् बोध, सम्पूर्ण बोध; अपनी चेतना का ज्ञान, अपनी सम्यक दृष्टि को उपलब्ध करना। अपने चेतन-तत्त्व को उपलब्ध करके निजानंद में डूब जाना, इसी का नाम संबोधि है। जब महावीर के चरणों में चंडकौशिक ने डंक मारा, तब महावीर ने उसे एक ही शब्द कहा, उस शब्द को मैं शास्त्र की संज्ञा दे सकता हूँ| महावीर ने कहा-चंडकोस्सि बुझ्झ ! चंडकौशिक ! तू बोधि प्राप्त कर। अगर तू बोधि-प्राप्त कर रहा है, तो समझ ले तेरी चेतना निष्कलुष हो गई है। ये सूत्र संबोधि की सवास है, संबोधि की बौछार है। अगर हम लोग इन सूत्रों में गहराई से, तन्मयता से डूबने की कोशिश करेंगे, तो प्रतीत होगा कि अनन्त के मोती हमारे करीब, और करीब आ रहे हैं। सूत्र हैं अंतस् के आकाश में, चुप बैठा वह कौन । गीत शून्य के गा रहा, महागुफा में मौन ।। बैठा अपनी छांह में, चितवन में मुस्कान । नूर बरसता नयन से, अनहद अमृतपान ।। शांत हुई मन की दशा, जगा आत्मविश्वास । सारा जग अपना हुआ, आँखों भर आकाश ।। अन्तस् का आकाश :: 5 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy