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सकता है, जो ध्यान के मार्ग में प्रवेश करता है। स्व का ज्ञाता ही तो सर्वज्ञ होता है। मेरे देखे विश्व के अध्यात्म-जगत की आत्मा अगर भारत है, तो भारत के अध्यात्म-जगत की आत्मा ध्यान है।
जैसे शरीर में सिर और वृक्ष में उसकी जड़ें महत्वपूर्ण होती हैं वैसे ही अध्यात्म के समस्त भागों का मूल ध्यान है । एक वृक्ष से अगर पत्ते तोड़ लिए जाएं, तो वृक्ष को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उसके फल तोड़ लिए जाएँ या शाखाएँ भी काट ली जाएँ, तो भी उसे कोई हानि नहीं होगी, लेकिन अगर वृक्ष की जड़ें ही काट दी जाएँ, तो वृक्ष का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। जैसे वृक्ष में उसका महत्वपूर्ण अंग जड़ें हैं, वैसे ही मानव-देह की जड़ें उसका मस्तिष्क है। मस्तिष्क को क्षति पहुँची कि मनुष्य का शरीर अक्षम हो जाता है, हर तरह से नाकाम। जिस तरह बीमार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए 'मेडिसिन' की आवश्यकता होती है, उसी तरह उसकी चेतना के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए 'मेडिटेशन की आवश्यकता होती है। चेतना को स्वस्थ, निर्मल और पावन करने के लिए ध्यान औषधि है।
जो व्यक्ति ध्यान में जीता है, वह मुक्ति-लाभ को प्राप्त कर लेता है। हमारा हर कृत्य, हर गतिविधि ध्यान से जुड़ी होनी चाहिए। हमारे यहाँ कहावत है-अंत मति सो गति । लेकिन ध्यान है विचार-मुक्ति का साधन । शुभ और अशुभ भावों से ऊपर उठना। ठीक ऐसा ही है जैसे स्वर्ग और नरक के विचार से उठकर मोक्ष पाना। स्वर्ग और नरक तो विचारों की भांति हैं जो शुभ और अशुभ के प्रतिनिधि हैं, लेकिन स्वर्ग और नरक के ऊपर एक और तत्त्व है, जिसे हम मोक्ष कहते हैं। ध्यान के मार्ग से गुजर जाने पर हमारे भीतर न तो शुभ विचार होंगे और न अशुभ विचार ही, तभी उसकी परिणति मृत्यु के बाद मोक्ष के रूप में होगी। जहाँ व्यक्ति विचार से मुक्त हो गया, अपने भीतर चलने वाले वैचारिक संघर्ष से मुक्त हो गया, तो वहाँ ध्यान मुक्ति का संदेश लिए आता है।
इस मुक्ति-लाभ के लिए गहरे में डुबकी लगानी होगी। अगर हम ऊपरऊपर तैरते रह गए, तो हाथ कुछ भी नहीं आने वाला है। जो भीतर के सागर में जितना गहरा उतरा, उसे उतना ही अधिक मोतियों का खजाना हाथ लगा। ____ मुझे याद है। एक आदमी अपने घर से निकलता तो बाहर मौहल्ले में दस-पन्द्रह बच्चे खेल रहे होते। वह उनसे पूछता कि ताजमहल के बारे में जानते हो? बच्चे कहते कि नहीं, हम तो नहीं जानते। तब वह कहता-बेवकूफों, दिन भर यहाँ पड़े रहते हो। कभी बाहर जाओ, तो पता चले कि दुनिया में ताजमहल भी है। इसी तरह वह कभी कुतुबमीनार के बारे में पूछता, तो कभी इंडिया 4 : : महागुहा की चेतना
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