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है। उसे प्रेम से स्वीकार करो। अगर व्यक्ति सुख और दुख, दोनों को समान रूप से, जो हुआ अच्छा हुआ मानकर यदि व्यक्ति यह स्वीकार कर ले, तो असंतोष और अतृप्ति से बचा हुआ कहा जा सकता है।
मुझे याद है किसी सम्राट के हाथ के अंगूठे में कोई घाव हो गया। उपचार कर लेने के बावजूद घाव ठीक न हुआ और अंततः राजा का अंगूठा काटना पड़ा। अपना अंगूठा कट जाने के कारण सम्राट स्वयं को आंशिक विकलांग महसूस करने लगा और हर समय खिन्न रहने लगा। और तो और, राजसभा में बैठे, तो भी उसके चेहरे पर खिन्नता स्पष्ट झलक कर आती थी।
एक दिन महामंत्री ने सम्राट से उदासीनता का कारण पूछा। सम्राट के कारण बताने पर महामंत्री ने कहा, 'आप इस बात के लिए खिन्न न हों। अगर अंगूठा कटा है, तो भगवान ने अच्छा समझा होगा, तभी कटा है। जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है।
महामंत्री की बात सुन सम्राट और कुपित हो गया। मेरा तो अंगूठा कटा है और यह कह रहा है कि जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है। रुष्ट हुए सम्राट ने मंत्री को कारागार में डाल दिया।
कई दिन बीत गए। कहते हैं, एक दिन सम्राट शिकार खेलने जंगल में गया। किसी हिरण के पीछे वह इतना तेज घोड़ा दौड़ाता हुआ चला गया कि सारे सैनिकों से अलग होकर वह मार्ग भटक गया। भीलों की बस्ती में भीलों ने सम्राट को पकड़ लिया। उन्हें देवी के लिए बलि चढ़ाने को एक इंसान की आवश्यकता थी। सम्राट के लाख मना करने पर वे माने नहीं। देवी के सामने बलि चढ़ाने के लिए सम्राट को उपस्थित किया गया। जैसे ही तलवार सम्राट की गर्दन पर चलने वाली थी कि अचानक भीलों के गुरु ने कहा कि इस मनुष्य की बलि नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसके हाथ का अंगूठा कटा हुआ है। देवी के द्वार पर तो पूर्ण शरीर की ही बलि दी जाती है।
सम्राट को छोड़ दिया गया। वह तो आश्चर्यचकित था विधि की व्यवस्था को देखकर। जिस कटे अंगूठे को उसने अपने लिए अभिशाप माना था, वही जीवन के लिए वरदान बन गया। उसे मन्त्री की बात की स्मृति हो आई। उसने मन ही मन मन्त्री को धन्यवाद दिया और क्षमा चाही। सम्राट राजमहल पहुँचा और मंत्री को मुक्त करते हुए कहा, 'मंत्री, तुमने ठीक कहा था कि जो होता है, वह अच्छा ही होता है। और उसने अपनी सारी आपबीती बताई।
112 : : महागुहा की चेतना
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