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________________ को पूर्ण कर लेते हैं, आप वानप्रस्थ के अधिकारी हो जाते हैं । अन्यथा आप कभी भी संसार से हटना ही नहीं चाहेंगे । अपने जीवन में पनपने वाली बुढ़ापे की प्रवृत्ति को आखिर हम कब तक दफनाते रहेंगे? हम शरीर की चाहे जितनी साज-सज्जा कर लें, मन की चाहे जितनी इच्छाएँ पूर्ण कर लें, लेकिन इनमें से कुछ भी हमारे साथ नहीं जाने वाला है। अपने हर 'मेरे' को टटोलें कि क्या यह मेरे साथ जाएगा ? सूरत में एक जाति है, उन में जब किसी की मृत्यु हो जाती है, तो एक विचित्र परम्परा है कि उसके परिजन अपने धर्मगुरु के पास जाते हैं। उन्हें दान-दक्षिणा देकर भगवान के नाम एक चिट्ठी लिखवाते हैं कि इसने बहुत धर्म किया है, बहुत पुण्य कमाया है तथा मृत्यु के बाद बहुत दान दिया गया है । हे भगवान, इसको सर्वसुख सम्पन्न स्वर्ग प्रदान करना । जब शव दफनाया जाता है, तो उस चिट्ठी को भी उसके साथ दफना दिया जाता है। विचारणीय है कि क्या यह चिट्ठी कभी भगवान के पास पहुँच भी पाती होगी या कि उसी शव के साथ नष्ट हो जाती होगी। जब तुम्हारा चेतन तुम्हारे शरीर से अलग हो गया, तो इस माटी का क्या ? यह तो माटी में ही मिल वाला है। हाँ, अगर तुम्हारे चैतन्य ने कुछ संपदा कमाई हो, तो निश्चित ही वह उसके साथ जाएगी। चेतना का विकास शरीर में रहकर होता है, लेकिन शरीर से राग, मोह हो जाने पर शरीर के साथ कुछ भी नहीं जाता । एक व्यक्ति किसी पेड़ की शाखा से लटका हुआ है। पेड़ की उस शाखा कुआं है। कुएं में अजगर मुँह खोले बैठा है उसे निगलने के लिए और जिस डाली पर वह लटका हुआ है, उसे चूहे कुतर रहे हैं । वह देख रहा है, अगर यह चूहा इसी तरह कुतरता रहा तो डाली टूट जाएगी, मैं कुएं में गिर जाऊंगा और यह अजगर मुझे निगल जाएगा। तभी उसके होठों पर, पेड़ पर लगे शहद के छत्ते से शहद की एक बूंद आकर गिरती है, वह उसका स्वाद लेता है। दूसरी बूंद गिरती है, तीसरी बूंद गिरती है और वह उसके स्वाद में मशगूल होता जाता है। तभी ऊपर से एक विमान गुजरता है । विमान चालक उसे सचेत करता है कि डाल गिरने वाली है, इसलिए वह विमान की रस्सी पकड़ ले, लेकिन वह कहता है- दो मिनट और ठहरो । दो बूंद मधुरस और पी लूं, फिर चलूं । समय बीतता है, रसास्वादन के फेर में शाख टूट जाती है और वह कुएं में जा गिरता है। इसी तरह जब कभी मुक्त होने की वेला आती है, तुम्हें बंधन भी दिखाई देते हैं और तुम्हारा मन कहता है कि ये बंधन भी रसोत्पादक प्रेम का विस्तार :: 95 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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