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________________ कि जरा सोच, अब तेरा शरीर कृश हो गया है, कमर झुक गई है, आँखों से दिखाई नहीं देता, सिर के बाल सफेद हो गए हैं, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं, अब तो अपने मन को टटोल, अपने भीतर पलने वाले बंधनों को टटोल और देख कि तू अब भी संसार से कितना आबद्ध है, कितना जकड़ा हुआ है, संसार के प्रति कितना आसक्त है। अंगं गलितं पलितं मुंडं, दशन विहीनं जातं तुंडम्। वृद्धो याति गृहीत्वा दंडम्, तदपि न मुंचत्याशा पिंडम् ।। __ अंग गल गये, सिर के बाल पक गए, दांत गिर गए, कमर झुक गई, सहारे के लिए लकड़ी हाथ में थामनी पड़ती है, ऐसी स्थिति हो गई है, लेकिन फिर भी आशा न मरी, आशा न छूटी, आसक्ति के प्रपंच से मुक्त न हुए। सोचो, वृद्ध आखिर किसकी शरण गहेंगे। संबोधि रंग के प्रकाश में आओ। यह वृद्ध के लिए जीने का सहारा है, जवान के लिए मील का पत्थर है, किशोर के लिए नई संभावनाओं को तलाशने की प्रेरणा है।। हम संबोधि-सूत्रों से गुजर रहे हैं, जो दुनिया भर के फूलों से निचोड़कर बनाया गया इत्र है। अगर व्यक्ति इस सार को स्वीकार कर लेता है, तो परिणाम यह होगा कि तुम भले ही संसार में रहोगे, लेकिन तब जीने की एक व्यवस्था होगी। एक अलग ही ढंग होगा, फिर तुम्हारा जीवन शांतिमय, आनंदमय होगा। तुम अगर जीवन को संबोधिमय बना लेते हो, तो शांति स्वतः तुम में झरेगी, सुख स्वतः तुम में बरसेगा, आनंद तुम्हारे रोम-रोम में नृत्य करेगा। वैदिक परम्परा में जिंदगी को जीने की व्यवस्थाएँ दी गईं कि व्यक्ति अपनी जिंदगी के चार विभाग करे। जिसमें पहला भाग ब्रह्मचर्य, दूसरा गृहस्थ, तीसरा वानप्रस्थ और चौथा संन्यास है। हम इसी अनुक्रम से बालक, वयस्क, प्रौढ़ और वृद्ध होते हैं। यहाँ पर भी सभी आयुवर्ग के हैं, लेकिन मैं अधिकांश प्रौढ़ और वृद्ध ही देख रहा हूँ। वेद-वर्णित वानप्रस्थ आश्रम में या उसकी ओर अग्रसर होते हुए, लेकिन यहाँ क्या किसी ने भी वानप्रस्थ स्वीकार किया है ? वानप्रस्थ की पहचान क्या? क्या बालों की सफेदी वानप्रस्थ की द्योतक है ! अब तो वह भी संभव नहीं, क्योंकि नवजात शिशु के भी श्वेत केश हो सकते हैं और पचास वर्षीय व्यक्ति बालों को रंगकर अपनी उम्र छिपा सकता है। फिर वानप्रस्थ की पहचान कैसे हो? जब आप अपनी नैतिक जिम्मेदारियों 94 : : महागुहा की चेतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003894
Book TitleMahaguha ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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